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________________ छेदसूत्रकार श्रुत० भद्रबाहु] श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य श्री भद्रबाहु ३६५ अनुयोगों के रूप में किये गये सूत्रों के विभाजन की घटना का उल्लेख श्रुतकेवली भद्रबाहु द्वारा किया जाना संभव एवं बुद्धिगम्य नहीं हो सकता क्योंकि उनका वीर नि० संवत् १७० में स्वर्गवास हो चुका था। ३. प्रावश्यक नियुक्ति की गाथा ७६४ से ७६६ और ७७३ से ७७६ में वज्रस्वामी के विद्यागुरु स्थविर भद्रगुप्त, 'आर्य सिंहगिरि, श्री वज्रस्वामी', आचार्य तोसलिपुत्र, आर्य रक्षित, फल्गुरक्षित आदि, .श्रुतकेवली भद्रबाहु के पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों से सम्बन्धित विवरणों के उल्लेख के साथ-साथ वज्र ऋषि को अनेक बार वंदन-नमस्कार किया गया है। ऐसी स्थिति में चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु को नियुक्तिकार कदापि नहीं माना जा सकता। क्शोंकि उनके द्वारा अपने से बहुत काल पश्चात् हए प्राचार्यों के प्रति इस प्रकार के विनय-वन्दननमन आदि की किसी भी दशा में संगति नहीं हो सकती। ४. पिण्ड नियुक्ति की गाथा ४६८ में प्राचार्य पादलिप्तसूरि के सम्बन्ध में तथा ५०३ से ५०५ गाथाओं में वज्रस्वामी के मामा आर्य समितसूरि के सम्बन्ध में और ब्रह्मद्वीपिक तापसों की श्रमणदीक्षा एवं ब्रह्मद्वीपिक शाखा की तुंबवरणसग्निवेसामो, निग्गयं पिउसगासमल्लीणं । छम्मासियं छसु जयं, माउय समन्तियं वन्दे ।।७६४।। जो गुज्झएहिं बालो, निमन्तिम्रो भोयणेण वासंते । णेच्छइ विणीयविणो, तं वयररिसिं ‘णमंसामि ।।७६५।। उज्जणीए जो जंभगेहिं, प्राणक्खिऊरण थुयमहियो । अक्खीणमहाणसियं, सीहगिरिपसंसियं वंदे ॥७६६।। जस्स अरगुण्णए वायगत्तणे दसपुरम्मिणयरम्म । देवेहिं कया महिमा, पयाणुसारि रणमंसामि ।।७६७।। जो कन्नाइ धणेण य, णिमंतिम्रो जुव्वणम्मि गिहवइणा । नयरम्मि . कुसुम नामे, तं वइररिसिं रणमसामि ।।७६८।। जेणुद्धरिमा विज्जा, पागासगमा महापरिण्णायो।। वंदामि प्रज्जवइरं, अपच्छिमो जो सुयहराणं ।।७६६।। अपुहुत्ते अणुप्रोगो, चत्तारि दुवार भासई एगो। पुहुत्ताणुप्रोगकरणे ते अत्थतम्रो उ वोच्छिन्ना ।।७७३।। देविदेवंदिएहि, महाणुभागेहिं रखि अज्जेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो, अणुप्रोगो तो कमो चउहा ।।७७४।। माया य रुद्द सोमा, पिया य नामेण सोमदेव त्ति । भाया य फग्गुर क्खिय, तोसलिपुत्ता य पायरिया ।।७७५।। निज्जवरण भद्दगुत्ते, वीसुं पढ़णंच तस्स पुव्वगयं । पवावियो य भाया, रक्खियखमणेहिं जरणपो य ।।७७६।। [प्रावश्यक नियुक्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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