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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [अवंती का प्रद्योत रा० __अवन्तीसेन द्वारा कौशाम्बी पर आक्रमण करने से कुछ समय पूर्व विजयवती नाम की महत्तरा की शिष्या विगतभया ने अनशन किया था। कौशाम्बी के श्रद्धालु श्रावक-श्राविका संघ ने उस अवसर पर साध्वी के त्याग की महिमा करते हुए बड़े महोत्सव के साथ उसका अनेक प्रकार से सम्मान किया। इस घटना के थोड़े ही दिनों पश्चात् धर्मघोष और धर्मयश नामक दो साधुनों ने अपना अन्तिम समय समीप समझ कर अनशन करने का निश्चय किया। धर्मघोष मुनि के मन में लोगों द्वारा सम्मान और प्रतिष्ठा पाने की उत्कण्ठा जागृत हुई और यह सोच कर कि जिस प्रकार विगतभया साध्वी की प्रतिष्ठा हुई थी उसी प्रकार की उसकी भी होगी, उन्होंने कौशाम्बी नगरी में अनशन किया। धर्मयश मुनि को मान-सम्मान की किसी प्रकार की चाह नहीं थी अतः उन्होंने अवन्ती और कौशाम्बी के मध्यमार्ग में स्थित पत्सका नदी के तटवर्ती पर्वत की गुफा के एकान्त स्थान में प्रनशन करने का निश्चय कर उस ओर विहार किया। जिन दिनों धर्मघोष मूनि कौशाम्बी में अनशन कर रहे थे, उन्हीं दिनों अवन्तीसेन ने कौशाम्बी पर आक्रमण कर दिया।
शत्रु के भय से लोग अपने घरों से बाहर निकलते हुए भी हिचकते थे प्रतः अनशन धारण किये हुए धर्मघोष मुनि के पास कोई व्यक्ति नहीं गया और उनका प्राणान्त हो गया। नगर के चारों ओर अवन्तीराज की सेना का घेरा पड़ा था अतः नगर के परकोटे के द्वार को खोलना खतरे से खाली नहीं था। यह सोच कर लोगों ने धर्मघोष मुनि के शव को परकोटे की दीवार पर से शहर के बाहर फेंक दिया।
दोनों ओर से युद्ध की पूरी तैयारियां हो चुकी थी। उस समय साध्वी धारिणी ने भीषण नरसंहार को बचाने के लिये अपने निगूढ़ रहस्य का उद्घाटन करना आवश्यक समझा। धारिणी राजभवन में मणिप्रभ के पास पहुंची। साध्वी को देखते ही मणिप्रभ ने अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा में प्रगाढ़ भक्ति के साथ उन्हें वन्दन किया । साध्वी ने कहा - "अपने सहोदर के साथ तुम्हारा यह
युद्ध कैसा?"
___ मणिप्रभ ने पाश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा- "पूज्ये ! यह पाप क्या कह रही हैं ? यह शत्रु मेरा सहोदर किस प्रकार हो सकता है ?"
इस पर साध्वी धारिणी ने प्रादि से अन्त तक समस्त वृत्तान्त सुनाते हुए बताया कि उसने उसे जन्म देते ही किस प्रकार, किस स्थान पर, किन-किन प्राभरणों एवं पहिचान के चिन्हों के साथ रखा और किस प्रकार कौशाम्बी के अधिपति महाराज अजितसेन उसे प्रांगण से उठा कर अपने अन्तःपुर में ले गये।
___ कौशाम्बी की राजमाता ने अपने समक्ष घटित हुई उन सब बातों की पुष्टि की, जो साध्वी धारिणी ने बताई थीं। नामांकित मुद्रिकामों, राष्ट्रवर्धन तथा धारिणी के प्राभरणों पर अंकित नाम एवं राजचिन्हों आदि तथा मणिप्रभ
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