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________________ २७२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [म० अ० ० का उद्भव ने अपने बगल में छुपाई हुई छुरी को निकाला। एक दो क्षण उस छुरी को अपने हाथ में नचाते हुए कल्पाक ने ब्रह्मराक्षस की तरह भीषण अट्टहास किया और लपक-झपक कर उस छूरी के प्रहार से रजक का पेट चीर डाला। रजक धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा और उसके उदर से रक्तधारा बह निकली। कल्पाक ने उस रजक के लह में अपनी पत्नी के वस्त्रों को रंगा। अपने पति को निश्चेष्ट पृथ्वी पर छटपटाते देखकर रजकपत्नी ने करुण ऋदन करते हुए कल्पाक से कहा"ब्राह्मण देवता ! आपने मेरे निरपराध पति को व्यर्थ ही.मार डाला है। हमारा कोई अपराध नहीं, हमने तो महाराज नन्द की आज्ञा से अनुबद्ध होने के कारण प्रापको वस्त्र नहीं दिये ।" यह कहकर रजकपत्नी फूट-फूटकर रोने लगी। विलक्षण बुद्धि कल्पाक ने तत्क्षण वस्तुस्थिति को समझ लिया। उसने मन ही मन सोचा - "अच्छा, तो महाराज नन्द ने अपनी आज्ञा का अनुपालन करवाने हेतु यह षड्यंत्र रचा है। इस रंजक की हत्या के अपराध में राजपुरुष मुझे पकड़ कर ले जायं, उससे पहले ही मुझे महाराज नन्द के समक्ष उपस्थित हो जाना चाहिये।" इस प्रकार का निश्चय कर कल्पाक तत्काल त्वरित गति से मगधपति महाराज नन्द के राजभवन की ओर प्रस्थित हुआ। कल्पाक को दूर से देखते ही नन्द ने अनुमान लगा लिया कि उसका दूरदर्शितापूर्ण प्रपंच अाज रंग ले प्राया है और उसकी मनोकामना आज पूर्ण होने जा रही है। वह मन ही मन अपार मानन्द का अनुभव करने लगा। ज्योंही कल्पाक ने उसके कक्ष में पैर रखा कि नन्द अपने सिंहासन से उतर कर कल्पाक के सम्मुख पाया। बड़े अादर के साथ उसने कल्पाक को अपने पास ही के एक उच्च सिंहासन पर बैठाया। नन्द ने कल्पाक के मुख के हाव-भावों से उसकी प्राभ्यंतरेच्छा का परिज्ञान कर लिया। अपनी कार्यसिद्धि के लिये उपयुक्त अवसर देखकर नन्द ने अत्यन्त मधुर स्वर में कल्पाक से प्रार्थना की - "विद्वन् ! आप मगधराज्य का प्रधानामात्य पद स्वीकार कर मगधराज्य की सर्वतोमुखी प्रगति एवं श्रीवृद्धि कीजिये।" "यथाज्ञापयति देव !" कहकर कल्पाक ने महाराजा नन्द की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। एक नीतिनिष्णात सुयोग्य विद्वान को अपने प्रधानामात्य के रूप में प्राप्त कर नन्द ने अपने आपको कृतकृत्य माना। नन्द ने अत्यन्त हर्षविभोर हो अपने हृदय में सुदीर्घकाल से कण्टक के समान खटकने वाली अनेक विकट समस्थानों के समाधान के सम्बन्ध में कल्पाक के सम्मुख कतिपय गूढ़ प्रश्न रखे । सुतीक्षणबुद्धि कल्पाक ने तत्क्षण उन समस्यायों के समाधान सम्बन्धी सहज उपाय नन्द के सम्मुख प्रस्तुत किये, जिन्हें सुनकर नन्द बड़ा प्रसन्न, प्रभावित एवं चमत्कृत हुआ। जिस समय महाराज नन्द और कल्पाक मन्त्रणा कर रहे थे, उस ही समय रंजकों का एक प्रतिनिधिमंडल महाराज नन्द के दरबार में कल्पाक के विरुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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