SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाटलीपुत्र का निर्माण ] केवलिकाल : श्रार्य जम्बू २६७ से बचाने के लिये उन्होंने तत्काल अपना प्राणान्त करने का निश्चय किया । आलोचना-प्रतिक्रमण करके आचार्य महाराज ने उदायी के हत्यारे द्वारा घटनास्थल पर छोड़ी गई छुरी से अपना मस्तक काट कर अपना प्राणान्त कर लिया ।" इस प्रकार श्रावश्यक चूरिंग, आवश्यक वृत्ति, परिशिष्ट पर्व आदि प्राचीन ग्रंथों के उल्लेखानुसार वीर निर्वाण संवत् ६० में, आर्य जम्बूस्वामी के संघाधिनायकत्व काल में ही शिशुनागवंश के अन्तिम राजा संततिविहीन उदायी की हत्या के साथ ही मगध राज्य पर शिशुनागवंश का आधिपत्य समाप्त हो गया । उदायी का हत्यारा विद्रोही राजकुमार साधुवेष का परित्याग कर उज्जयिनी के अधीश्वर के पास पहुंचा और उसे स्वयं द्वारा की गई उदायी की हत्या का सारा वृत्तान्त कह सुनाया । उज्जयिनी के महाराजा ने उसकी भर्त्सना करते हुए कहा - "बारह वर्ष की लम्बी अवधि तक महान् प्राचार्य की सेवा में रहते हुए श्रमणाचार के पालन करने के अनन्तर भी तुम्हारी पाशविक मनोवृत्ति में किंचित्मात्र भी परिवर्तन नहीं आया, इससे सिद्ध होता है कि तुम एकान्ततः प्रविश्वसनीय नराधम हो । तुम यथाशीघ्र मेरी राज्य-सीमा से बाहर निकल जाओ ।" अवन्तीपति द्वारा तिरस्कृत हो कर वह विद्रोही गया । वह जहां कहीं जाता लोगों द्वारा यह कह कर उदायी मारक है । अनेक इतिहासज्ञों द्वारा आशंका प्रकट की जाती है कि कौशाम्बी के राजा उदयन के जीवन की अन्तिम घटना को मगधपति उदायी के साथ किसी समय भ्रान्तिवश अथवा भूल से जोड़ दिया गया है। उनका प्रभिमत है कि वत्सपति उदयन पुत्र विहीन था और उसके किसी शत्रु ने साधु का छद्मवेष धारण कर उसकी हत्या की थी । मगधपति उदायी न तो पुत्र विहीन ही था और न उसकी किसी के द्वारा हत्या ही की गई थी । वस्तुतः यह एक गहन शोध का विषय है । भारतीय वाङ्मय से भिन्न 'महावंशों' के एतद्विषयक कतिपय उल्लेखों से इस प्रश्न की जटिलता और भी बढ़ गई है । नन्दवंश का प्रभ्युदय प्रायः श्वेताम्बर परम्परा के प्रावश्यक चूरिंग प्रादि सभी ग्रन्थों में नन्दवंश अभ्युदय के सम्बन्ध में निम्नलिखित रूप से उल्लेख उपलब्ध होता है : के राजकुमार वहां से चला दुत्कारा जाता कि यह मगधपति महाराजा उदायी की हत्या से कुछ समय पूर्व वेश्यां के गर्भ से उत्पन्न पाटलिपुत्र निवासी नन्द नामक एक नापितं पुत्र ने रात्रि की अवसान वेला में स्वप्न देखा कि उसने अपनी प्रांतों से समस्त पाटलिपुत्र नगर को परिवेष्टित कर लिया है। नन्द ने प्रातःकाल होते ही अपने उपाध्याय को अपना स्वप्न , रुहिरेणु ग्रायरिया पच्चालिया, उडिया, पेच्छ्रति रायाराग वाबाइयं मा पवयस्स उडाहो होहित्ति ग्रालय पडिकको ग्रापणो सीमं छिदेई कालगओ से एवं । [ ग्रावश्यक हारिभद्रीया, पत्र ६६० ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy