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________________ शिशु का संक्षिप्त परिचय ]. केवलिकाल : भायं जम्बू २५३ इस परम्परागत जातिविद्वेष के कारण तो वैशाली के महाराज चेटक मगधपति श्रेणिक को वाहीक नहीं कह सकते क्योंकि वे स्वयं हैहय वंश की लिच्छवी जाति के क्षत्रिय थे और मगधपति श्रेणिक वज्जी (व्रिज्जी) जाति के हैहयवंशी क्षत्रिय । ऐसी दशा में चेटक द्वारा श्रेणिक के लिये "वाहीककुलजो " कहने के दो ही कारण हो सकते हैं। पहला यह कि महाराजा श्रेणिक महाराजा चेटक की इच्छानुसार गरगराज्य व्यवस्था में सम्मिलित नहीं हुए इसलिये उन्हें वाहीक कहा हो। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि श्रेणिक के पूर्वज हैहयवंशी क्षत्रिय होने पर भी किसी संक्रान्तिकाल में किसी ( टर्की आदि) ऐसे प्रदेश में रह चुके हों जिसे उस समय अनार्य देश समझा जाता हो । युक्ति की कसौटी पर कसे जाने के अनन्तर यह दूसरा कारण केवल काल्पनिक ही ठहरता है, क्योंकि सगर के समय में कौन लोग कहां-कहां गये थे इसका लेखा-जोखा अनेक सहस्राब्दियों तक रखना नितांत असाध्य ही समझा जायगा । पहला कारण युक्तिसंगत माना जा सकता है । हैहयवंशी समस्त कुलों के क्षत्रियों ने संगठित हो कर वैशाली गणराज्य की स्थापना की, उस समय उन सब लोगों ने मगध के हैहयवंशी शासकों को उस संघ में सम्मिलित होने के लिये बहुत श्राग्रह किया होगा पर मगध के शासकों द्वारा उनकी प्रार्थना को पूर्णरूपेण ठुकरा दिये जाने के पश्चात् ६ मल्ली, εलिच्छवी राजाओं ने मगध के राज्यवंश के प्रति क्षोभ प्रकट करते हुए उसे वाहीक ( बहिष्कृत) घोषित कर दिया होगा । इस प्रकार की घोषणा के पीछे जातीय हीनता अथवा उच्चता कारण न बन कर राजनैतिक (सैद्धान्तिक ) मतभेद ही कारण रहा होगा । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि व्रिज्जी शाखा के ये हैहयवंशी शासक शिशुनागवंशी किस कारण से कहलाये । शिशुनागवंश की स्थापना के सम्बन्ध में वायुपुराण में विवरण दिया गया है कि वाराणसी में शिशुनाक नामक राजा होगा । वह अपने पुत्र शकवर्ण ( काकवर्ण) को वाराणसी के राज्य का स्वामी बना कर स्वयं गिरिव्रज के राज्य का स्वामी बनेगा ।" हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं शिशुनाको भविष्यति ॥ १७३ ॥ वाराणस्यां सुतस्तस्य, संप्राप्स्यति गिरिव्रजम् । शिशुनाकस्य वर्षाणि चत्वारिंशद् भविष्यति ॥ १७४।। [ वायु पुराण, म० ६१] नोट : वायु पुराण में शिशुनाक को प्रद्योतों के पश्चात् बताया गया है यह ठीक नहीं है। " श्लोक संख्या १६८ के तृतीय पाद" बृहद्रश्रेश्वतीतेषु" के संदर्भ में ही 'शिशुनाको भविष्यति' पढ़ना चाहिये। क्योंकि प्रद्योत वंश का संस्थापक चण्ड प्रद्योत भगवान् महावीर, बुद्ध और श्रेणिक का समकालीन था इस तथ्य को बौद्ध और जैन दोनों परम्पराएं एक मत से स्वीकार करती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only सम्पादक www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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