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________________ २४९ मगध का शिशुनाग-राजवंश] - केवलिकाल : पायं जम्बू हुए हैं। मगध के उन प्रतापी शासकों ने समय-समय पर क्षितिप्रतिष्ठित नगर, चरणकनगर, वृषभपुर, कुशाग्रपुर, राजगह, चम्पा और पाटलीपुत्र (पटना) नगर बसा कर उन्हें मगध की राजधानी बनाया, इस प्रकार के उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं।' इतिहासप्रसिद्ध इस वंश के राजा प्रसेनजित् भगवान् पार्श्वनाथ के धर्मतीर्थ के परमभक्त एवं श्रद्धालू श्रावक थे। प्रस्तुत ग्रन्यमाला के प्रथम भाग में विस्तारपूर्वक बताया जा चुका है कि मगधाधीश प्रसेनजित् के पुत्र महाराज श्रेणिक (विम्बसार) भगवान् महावीर के प्रमुख भक्त नराधिपों में अग्रणी थे। उन्होंने भगवान् महावीर के धर्मशासन की प्रत्युत्कट सेवा कर तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन किया। महाराजा श्रेणिक की अनेक रानियों,पुत्रों और कुटुम्बीजनों ने, भगवान महावीर के उपदेशों से प्रभावित हो श्रामण्य अंगीकार कर आत्मकल्याण किया। ___ मगधाधिप महाराज श्रेणिक की मृत्यु (वीर निर्वाण से लगभग १७ वर्ष पूर्व) के पश्चात् कूरिणक (अजातशत्रु)ने मगध की राजधानी राजगृह मगर से हटा कर चम्पा में स्थापित की। अपने पिता महाराज श्रेणिक की ही तरह कूरिणक भी भगवान् महावीर का परमभक्त था।' जिस समय भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ और उस ही रात्रि के भवसान से पूर्व गौतम गणधर को केवलज्ञान की उपलब्धि हुई, उस समय मगध पर महाराजा कृरिणक का शासन था और मगध की राजधांनी चम्पा नगरी थी। कूरिणक द्वारा वैशाली के शक्तिशाली गणतन्त्र का अन्त कर दिये जाने के पश्चात् कूरिणक की सम्राट के रूप में और मगधराज्य की एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में गणना की जाने लगी थी। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् सुधर्मास्वामी के प्राचार्यकाल में भी मगधेश्वर कूरिणक केवलज्ञानी गौतमस्वामी के तथा प्राचार्य सुधर्मा स्वामी के दर्शन, वन्दन, उपदेशश्रवण आदि के लिये समय-समय पर उनकी सेवा में प्राता रहा, इस प्रकार के उल्लेख जैन वाङमय में उपलब्ध होते हैं। - आर्य सुधर्मास्वामी के प्राचार्यकाल में महत्त्वाकांक्षी मगधेश्वर कूणिक ने मगध राज्य का पर्याप्त विस्तार कर लिया था। कृरिणक के पिता श्रेणिक ने अपने राज्यकाल में ही अंग राज्ग पर विजय प्राप्त कर उसे मगध राज्य के अधीन कर लिया था अतः कूणिक को मगध और अंग का राज्य अपने पिता से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त हुआ । उसके अनन्तर कणिक ने बंग, विदेह, काशी, कौशल और कौशाम्बी पर भी विजय प्राप्त कर इन राज्यों को मगध के अधीन कर लिया था। 'प्रावश्यक नियुक्ति, गाथा १२८४ एवं पावश्वक हारिभद्रीया वृत्ति, उत्तर भाग, पृ०सं०.६७०-७१ २ प्रौपपातिक सूत्र, सूत्र ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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