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________________ ५२७ के साथ दीक्षा] केवलिकाल : आर्य जम्बू २२१ अपने माता-पिता, पाठों नवविवाहिता पत्नियों, पाठों पत्नियों के माता-पिता तथा कुख्यात चौरराज प्रभव एवं उसके ५०० साथियों के साथ आज ही दीक्षित हो रहे हैं। दीक्षा समारोह के अपूर्व ठाट को देखकर अपने नेत्रों को पवित्र करने की अभिलाषा लिये सभी नर-नारी शीघ्रतापूर्वक अपने आवश्यक कार्यों से निवृत्त एवं सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित होने लगे । अभिनिष्क्रमण सम्बन्धी सभी प्रकार की व्यवस्था बड़ी शीघ्रता के साथ सम्पन्न . कर ली गई । श्रेष्ठिवर । ऋषभदत्त एवं माता धारिणी ने अपने पुत्र को स्वयं सुगन्धित उबटनों के विलेपन के पश्चात् स्नान कराया और अंगराग एवं बहमूल्य वस्त्रालंकारों से विभूषित किया। उसी समय जम्बूद्वीप के अधिष्ठाता अनाधृत देव भी जम्बूकुमार की सन्निधि में पाये। अनेक प्रकार के वाद्य यन्त्रों की मधुर ध्वनि के बीच जम्बकुमार अपने माता-पिता के साथ एक हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका में प्रारूढ़ हए।' जयघोषों और वाद्यवृन्दों की कर्णप्रिय धुनों के साथ जम्बूकुमार की अभिनिष्क्रमण यात्रा प्रारम्भ हुई। कल ही जिनकी वरयात्रा का मनोरम दृश्य देखा गया था, उन्हीं जम्बूकुमार को अभिनिष्क्रमण यात्रा को देखने के लिए राजगृह के विशाल राजपथों पर चारों ओर जनसमुद्र उमड़ पड़ा । राजगृह के गगनचुम्बी भवनों की अट्टालिकाओं एवं सुन्दर गवाक्षों में अति मनोज्ञ वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कोकिलकण्ठिनी कुलवधुओं द्वारा गाये जा रहे मंगल गीतों की सुमनोहर स्वरलहरियों से गगनमण्डल गुंजरित हो रहा था । शिबिकारूढ़ जम्बूकुमार सावन-भादों की घनघटा से जलवर्षा की तरह अमूल्य मरिण-कांचनमिश्रित वसुधाराओं की अनवरत वर्षा कर रहे थे। उन्होंने लोक कल्याणकारी कार्यों के लिये अपनी सम्पत्ति का बहुत बड़ा भाग दान कर डाला और सम्पूर्ण चलअचल सम्पदा का सर्प कंचुकवत् परित्याग कर दिया । अगणित कंठों द्वारा उद्भूत 'धन्य', 'धन्य' की ध्वनि से राजगृह नगर का समस्त वायु-मण्डल प्रतिध्वनित हो रहा था। नगर के सभी नर-नारी विस्मित एवं विमुग्ध थे, नव-वय में जम्बूकुमार द्वारा किये गये अपूर्वत्याग पर । उनके द्वारा करोड़ों स्वर्णमुद्राओं और आठ नारी-रत्नों के त्याग पर प्रत्येक नागरिक आश्चर्य प्रकट कर रहा था। आबालवृद्ध द्वारा अत्यन्त श्रद्धापूर्वक जम्बूकुमार पर की गई गुलाल एवं सुगन्धित द्रव्यों की निरंतर वृष्टि के कारण नगर के मुख्य मार्ग ऐसे मनोहर प्रतीत हो रहे थे मानों उन पर लाल-लाल मखमली कालीन बिछा दिये गये हों। ' जम्बूरनाधृतेनाथ, देवेन कृतसन्निधि : । उदवा ह्या नृसहस्रण, शिबिकामारुरोह च ।। २८३ ।। परिशिष्ट पर्व, सर्ग ३ २ दानं विश्वजनीन स, ददान : कल्पवृक्षवत् ।......"।।२८४।। परिशिष्ट पर्व, सर्ग ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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