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________________ २१६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [प्रभव को प्रतिबोध विद्यानों से कोई प्रयोजन नहीं । वस्तुतः मैं कोई विद्या नहीं जानता। मैं तो पंचपरमेष्टिमंत्र को ही सबसे बड़ा मंत्र जानता हूं।" जम्बूकुमार की निस्पृहता और प्रवजित होने की बात सुन कर प्रभव को बड़ा विस्मय हुआ । उसने आग्रहपूर्ण स्वर में कहा- “सौम्य ! कुबेरोपम संपत्ति और सुरबालाओं के समान इन सुन्दर नववधुओं को छोड़ कर अभी आप प्रवजित न होइये । आप इन रमणी-रत्नों के साथ इस विपुल वैभव का समीचीनतया सुखोपभोग करने के पश्चात् वृद्धावस्था में प्रवजित हो जाना।" जम्बूकुमार ने पूर्ण कुशलता के साथ युक्तिपूर्वक प्रभव को प्रतिबोध दिया।' जम्बूकुमार के उपदेश से प्रबुद्ध हो प्रभव तथा उसके ५०० साथियों ने भी जम्बूकुमार के साथ ही प्रवजित होने की इच्छा प्रकट की और जम्बूकुमार की सहमति प्राप्त होने पर अपने माता-पिता की प्राज्ञा प्राप्त करने हेतु वह अपने साथियों सहित श्रेष्ठि ऋषभदत्त के घर से चला गया। पत्नियों के साथ चर्चा जम्बूकुमार की समुद्रश्री आदि आठ नवविवाहिता पत्नियों ने विरक्त जम्वूकुमार · को . संयम मार्ग से रोकने और सहज प्राप्त विपुल सुखसामग्री का सुखपूर्वक उपभोग करने की अनुरोधपूर्ण प्रार्थना करते हुए क्रमशः आठ दृष्टान्त सुनाये । उनके उत्तर में जम्बूकुमार ने भी अपनी पाठों पत्नियों द्वारा प्रस्तुत किये गये पाठ मार्मिक दृष्टान्तों के उत्तर में पाठ दृष्टान्त सुनाये। जम्बूकुमार और उनकी पत्नियों के बीच हुआ संवाद बड़ा प्रेरणादायक, बोधप्रद, रोचक और अनादि काल से अज्ञानावरणों के कारण पूर्णतः निमीलित अन्तर्वानों को सहसा उन्मीलित कर देने वाला है। उन दृष्टान्तों में से एक पद्मश्री द्वारा तथा उसके उत्तर में जम्बूकुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया, ये दो दृष्टान्त यहां अविकल रूप से दिये जा रहे हैं : जम्बूकुमार की प्रथम पत्नी. समुद्रश्री के पश्चात् दूसरी पत्नी पद्मश्री ने अपने प्राणेश्वर को सम्बोधित करते हुए प्रति विनम्र एवं मधुर स्वर में कहा"प्राणनाथ! पूर्वजन्म के पुण्यप्रताप से प्रापको विपुल वैभव और छाया के समान सदा आपकी अनुगामिनी ८ पत्नियां मिली हैं, इस सबसे और अधिक सुखोपभोग की सामग्री प्राप्त करने की प्राशा में इस सब का परित्याग कर प्रापको भी कहीं उस वानर की तरह घोर पश्चात्ताप और दारुण दुःख सहन नहीं करना पड़े जो मानवस्वरूप पा कर भी देवत्व की प्राप्ति के प्रयास में पुनः वानर बन गया ?" जम्वूकुमार ने सस्मित स्वर में पूछा - "मुग्धे ! वानर को किस प्रकार का पश्चात्ताप करना पड़ा?" इस पर पद्मश्री ने निम्नलिखित दृष्टान्त सुनाया :१ विस्तृत विवरण के लिये प्राचार्य प्रभव सम्बन्धी इतिवृत में देखिये । -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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