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________________ ८. अंतमदसामो] केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा १५३ भवभ्रमण का अन्त करने वाले साधकों की साधनादशा का वर्णन होने के कारण इसका नाम अन्तकृद्दशा रखा गया है। अंतकृद्दशा के प्रथम दो वर्गों में गौतम प्रादि वृष्णि कुल के १८ राजकुमारों की साधना का वर्णन है। उनमें से १० का दीक्षा काल १२-१२ वर्ष का और शेष ८ का १६-१६ वर्ष बताया गया है। इन सभी उच्चकुलीन राजकुमारों ने गुरगरत्नसंवत्सर जैसे कठोर तप की आराधना कर एक-एक मास की संलेखना से सब दुःखों का अन्त कर मुक्ति प्राप्त की। तीसरे वर्ग के १३ और चौथे वर्ग के १० अध्ययनों में वरिणत २३ चारिजारमा भी श्री वसुदेव, श्री कृष्ण, श्री बलदेव और श्री समुद्रविजय के राजकुमार बताये गये हैं। उन सभी ने भगवान् नेमिनाथ की सेवा में मुनिव्रत ग्रहण कर अनेक वर्षों तक संयमधर्म की पालना और कठोर तपश्चरण करते हुए समस्त कर्मों का अन्त कर अजरामर सिद्धपद प्राप्त किया। इनमें से श्रीकृष्ण के अनुज गजसुकुमाल ने बिना दीर्घकाल की श्रमणपर्याय के एक ही दिन की साधना द्वारा आत्मस्वरूप में लीन होकर समस्त कर्मों का एक अन्तर्मुहूर्त में ही अन्त कर दिया। सोमिल ब्राह्मण ने गजसुकुमाल के शिर पर भीगी मिट्टी की पाज बांध कर खैर के प्रदीप्त अंगारे रख दिये पर वे तन मन से अडोल निष्कंप, शान्त और आत्मस्वरूप में लीन रहे । कैसी अद्भुत क्षमता थी? केवल कुछ ही क्षणों की ज्ञानाराधना थी पर सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र की उत्कृष्टतम पाराधना द्वारा उन्होंने अन्तर्मुहुर्तकाल में ही केवलज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति कर ली। गजसुकुमाल की प्रति स्वल्पकालीन सफल साधना इस वात का ज्वलंत प्रमाण है कि सम्यग्ज्ञान स्वल्पतर होते हुए भी यदि अन्तस्तलस्पर्शी अथवा अन्तर्मुखी है तो वह बिना दीर्घकाल की तपस्या के भी सिद्धि प्रदान कर सकता है। पंचम वर्ग में बताया गया है कि राजकुमारों की तरह राजरानियां भी संयमसाधना द्वारा सिद्धि प्राप्त कर सकती हैं, स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही तद्भव मोक्षगमन का अधिकार है। श्रीकृष्ण की पद्मावती आदि रानियों और पूत्रवधुनों ने भी बोस २ वर्ष के दीक्षाकाल में ११.अंगों का ज्ञान प्राप्त कर दीर्घकालीन कठोर तपश्चर्या द्वारा सकल दुःखों का अन्त कर शाश्वत शिवपद प्राप्त किया। उपरोक्त पांच वर्गों में वरिणत सब साधक-साधिकारों ने भगवान नेमिनाथ के धर्मशासन में मक्ति प्राप्त की फिर भी उन सबका साधनापूर्ण जीवन साधनापथ में मार्गदर्शक है, इसलिये उनके उत्कृष्ट जीवनचरित्र भगवान् महावीर के शासनवर्ती "अन्तगडसूत्र" में सम्मिलित किये गये हैं। छठे वर्ग में भगवान महावीर के शासनवर्ती विभिन्न श्रेणी के १६ साधकों का वर्णन है । इन अध्ययनों से प्रमाग्मित किया गया है कि साधना में कुल, जाति व प्रवस्था का वर्गभेद नहीं होता। गाथापति, माली, राजा और बालक भी साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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