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________________ १३२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [५. वियाह-पण्यत्ति आदि स्थान, सूर्यलोक, अलोक, क्रिया, महावीर और रोहक के प्रश्नोत्तर, लोक-- स्थिति में मशक का उदाहरण, जीव और पुद्गल के सम्बन्ध में सछिद्रा नाव का उदाहरण, जीवादि का गुरुत्व-लघुत्व विचार, सामायिक आदि पदों के अर्थ, उपपात विरह आदि का इसमें वर्णन है। . दूसरे शतक में १० उद्देशक हैं जिनमें श्वासोच्छ्वास का विचार, स्कन्दक परिव्राजक के लोक और मरण सम्बन्धी प्रश्न, समाधान के लिये स्कन्दक का महावीर के पास प्रागमन, गौतम द्वारा स्वागत, समाधान पाकर स्कन्दक द्वारा दीक्षाग्रहण, तुंगिया के श्रावकों द्वारा पापित्यों से प्रश्नोत्तर, समुद्घात, सात पृथ्वियां, इन्द्रियवर्णन, उदग्गर्भविचार, तिर्यग्गर्भ, मानुषी गर्भ, मनुष्य और तिर्यंच स्त्री के बीज की स्थिति, एक जीव के पिता-पुत्र का उत्कृष्ट परिमाण आदि का उल्लेख है । तीसरे शतक में १० उद्देशक हैं जिनमें तामली तापंस की साधना, नियाग नहीं करने से दूसरे स्वर्ग में उत्पाद, प्रणामा प्रव्रज्या, दूसरे उद्देशक में चमरेन्द्र के पूर्वभव पूरण तापस की दानाभा प्रव्रज्या, सौधर्म देवलोक जाना, महावीर की शरण में आना आदि, उद्देशक ३ में क्रिया-विचार, उद्देशक ४ में अनगार वैक्रिय, उद्देशक ५, ६ में भी विक्रिया, उद्देशक ७ में लोकपाल सोम आदि और उनके कार्य का उल्लेख है। शतक ४ में १० उद्देशक हैं। पाँचवें शतक के १० उद्देशकों में से ७वें उद्देशक में नारदपुत्र और निग्रन्थीपुत्र का सम्वाद है। शतक ६ में वेदना आदि १० उद्देशक हैं, उनमें महावेदना में भी नरक की अल्प निर्जरा, श्रमण निर्ग्रन्थ की महानिर्जरा, निर्जरा के लिये कर्दम राग और खंजन राग के वस्त्र का उदाहरण, अग्नि में सूखे तृणों की पूली और तपे हुए तवे पर जलाबन्दु के समान श्रमण के कर्मभोग महानिर्जराजनक होते हैं, अल्पवेदन - महानिर्जरा की सोदाहरण चौभंगी, मूहुर्त के श्वासोच्छवास और कालंमान, पावलिका से उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, पृध्वियां, बंध आदि का उल्लेख है । ___७वें शतक में प्राहार प्रादि १० उद्देशक हैं। उनमें आहारक-अनाहारक कम की गति, पच्चखाण के भेद और स्वरूप, साता-असाता के बन्ध-कारण और छठे पारे का छठे उद्देशक में वर्णन किया गया है। महाशिला कण्टक और रथमृसल संग्राम का वर्णन, वरुण नाग का अभिग्रह और दिव्य गति - ये इस शतक के महत्वपूर्ण उल्लेख है। वें शतक में १० उद्देशक हैं। प्रथम में पुद्गल, दूसरे में प्राशीविष और शानलन्धि, तीसरे में वृक्ष, पांचवें में ३६ भांगा, श्रावक और आजीवक उपासक. की तुलना, छठे में तीन प्रकार के दान, एकान्त निर्जरा आदि, आठवें में प्राचार्य प्रादि के प्रत्यनीक, ५ व्यवहार बन्ध आदि, वें और १०वें उद्देशकों में बन्ध आदि का वर्णन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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