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जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग
[ ३. स्थानांग
(४) चौथे प्रकरण में स्त्री-पुरुष, प्राचार्य श्रावक आदि के चार-चार विकल्प कर सैकड़ों प्रकार की चौभंगियां बताई गई हैं। जैसे-खजूर ऊपर से मृदु और अन्दर से कठोर (१), बादाम जिस प्रकार ऊपर से कठोर अन्दर कोमल ( २ ), जिस प्रकार सुपारी अन्दर और बाहर दोनों ही प्रोर से कठोर ( ३ ) और द्राक्षा - जिस प्रकार ऊपर से भी मृदु तथा अन्दर से भी मृदु (४) ।
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चार पुरुष - रूपवान - गुणहीन, (१) गुणवान -रूपहीन, (२) रूप और गुरग दोनों से रहित ( ३ ), तथा रूप और गुण उभय - सम्पन्न ( ४ ) |
चार प्रकार की नारियां-रूपवती पर शीलविहीन ( १ ), शीलवती पर रूपविहीन ( २ ), रूप और शील उभयसम्पन्न, ( ३ ) रूप और शील उभयहीन ( ४ ) ।
चार प्रकार के कुंभ - अमृत का कुंभ - मुख पर विष (१) विषकुंभ - मुख पर अमृत ( २ ), विषकुंभ और विषभरा ढक्कन (३), तथा अमृत का घड़ा-अमृत का ढक्कन ( ४ ) ।
चार प्रकार के पुरुष – कार्य करे पर मान नहीं, (१), मान करे कार्य नहीं (२), कार्य भी करे और मान भी करे ( ३ ) और न कार्य करे न मान करे ( ४ ) इत्यादि ।
(५) पांचवें प्रकरण में जीवादि पदार्थों को ५ प्रकार से बतलाया है । जीव के ५ प्रकार - एकेन्द्रिय ( १ ), द्वीन्द्रिय ( २ ), त्रीन्द्रिय ( ३ ), चतुरिन्द्रिय (४) और पंचेन्द्रिय ( ५ ) ।
विषय पांच - शब्द विषय ( १ ), रूप ( २ ), गन्ध ( ३ ), रस ( ४ ) और स्पर्श विषय ( ५ ) |
इन्द्रियां ५ - श्रवणेन्द्रिय ( १ ), चक्षु इंन्द्रिय (२), धारणेन्द्रिय (३), रसनेन्द्रिय ( ४ ) और स्पर्शन - इन्द्रिय ( ५ ) ।
जीव के. ५ गुरण - उत्थान (१), क्रम (२), बल (३), वीर्य, (४) और पुरुषकार - पराक्रम (५) ।
अजीव के पांच प्रकार - धर्मास्तिकाय ( १ ), अधर्मास्तिकाय ( २ ), आकाशास्तिकाय ( ३ ), पुद्गलास्तिकाय ( ४ ), और काल द्रव्य ( ५ ) ।
आस्रव के पांच प्रकार - मिथ्यात्व ( १ ), अविरति ( २ ), प्रमाद (३), कषाय ( ४ ) और अशुभयोग - आस्रव ( ५ ) ।
पांच प्रकार का मिथ्यात्व अभिग्रहिक ( १ ), अनाभिग्रहिक ( २ ), अभिनिवेश ( ३ ) संशय मिथ्यात्व ( ४ ) और प्रनाभोग मिथ्यात्व ( ५ ) इत्यादि । (६) छठे प्रकरण में जीवादि पदार्थों का छः-छः की संख्या में वर्णन किया गया है । जैसे- जीव छः प्रकार का पृथ्वीकायिक जीव ( १ ), अप्कायिक जीव ( २ ), तेजस्कायिक जीव ( ३ ), वायुकायिक जीव ( ४ ), वनस्पतिकायिक जीव
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