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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [माचारांग द्वितीय तस्कन्ध नियुक्तिकार के मतानुसार आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की ५ चूलिकाएं मानी गई हैं उनमें से प्रथम चार चूलिकाएं ही विद्यमान हैं तथा निशीथ नाम की पांचवीं चूलिका विस्तृत होने के कारण संभवतः नियुक्तियों के रचनाकाल से पहले ही आचारांग से अलग की जा कर निशीथ नामक शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठापित कर दी गई थी। क्योंकि नन्दिसूत्र में इसका निशीथ के नाम से तथा स्थानांग, समवायांग एवं नियुक्ति में इसका प्राचारकल्प अथवा प्राचारप्रकल्प के नाम से उल्लेख उपलब्ध होता है । प्रथम चूलिका में पिण्डषणा आदि सात अध्ययन और उनके कुल मिला कर २५ उद्देशक हैं। पिण्डषणा नामक इसके प्रथम अध्ययन में निर्दोष माहारपानी किस प्रकार प्राप्त करना, भिक्षा के समय किस प्रकार चलना, किस प्रकार की भाषा बोलना, किस प्रकार पाहार प्राप्त करना आदि का वर्णन है। शय्यषणा नामक द्वितीय अध्ययन में सदोष-निर्दोष उपाश्रय का विचार किया गया है। तीसरे ईयषणा अध्ययन में चलने की विधि और अपवाद काल में नाव में बैठने की विधि बताई गई है। चौथे भाषेषणा अध्ययन में वक्ता के लिये १६ वचनों की जानकारी मावश्यक बताते हए क्रोधोत्पत्ति के कारणों का निषेध किया गया है। पांचवें वस्त्रषणा अध्ययन में यह बताया गया है कि साधु को किस प्रकार वस्त्र ग्रहण करने चाहिये। छठे पात्रषणा नामक अध्ययन में पात्र-ग्रहरण की विधि का निरूपण किया गया है। सातवें अवग्रहैषरणा नामक अध्ययन में यह बताया गया है कि श्रमण को अपने सावधि निवासार्थ किस तरह का मर्यादित स्थान किस प्रकार प्राप्त करना और उसमें किस प्रकार रहना आदि । यह पूरी चूलिका गद्यात्मक है। द्वितीय चूलिका में भी स्थान, निषीधिका आदि ७ अध्ययन हैं जो सभी उद्देशकरहित हैं। पहले अध्ययन में कायोत्सर्ग (ध्यान) आदि की दृष्टि से उपयुक्त स्थान तथा दूसरे अध्ययन में निषीधिका की प्राप्ति के सम्बन्ध में निर्देश दिया गया है। तीसरे अध्ययन में दीर्घशंका तथा लघुशंका के स्थान के बारे में निरूपण है। चौथे तथा पांचवें अध्ययन में क्रमशः शब्द और रूप के प्रति राग-द्वेष रहित रहने का श्रमण के लिये विधान है। द्वितीय चूलिका भी पूरी गद्यमय है। तीसरी "भावना" नामक चूलिका में भगवान महावीर के गर्भावतरण, गर्भ-साहरण, जन्म, जन्मोत्सव, नामकरण, तीन नाम, माता-पिता-पितृव्य के नाम, बहिन, भाई, भार्या, पुत्री एवं दोहित्री के नाम, माता-पिता का स्वर्गवास, वर्षीदान और साधना का वर्णन किया गया है। इसमें प्रत्येक महाव्रत की पांचपांच भावनाओं का भी प्रतिपादन किया गया है। इस चूलिका में चौवीस गाथाएं और शेष सब गद्य-पाठ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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