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पापाराग] कवनिकाल : मार्य सुधर्मा
-७५ समवायांग सूत्र' पौर नन्दी सूत्रों के मूल पाठ में प्राचारांग की (दोनों श्रुतस्कन्धों को मिला कर) पदसंख्या उल्लिखित है। इसके विपरीत पाचारांग नियुक्तिकार', पाचारांग -वृत्तिकार शीलांकाचार्य और समवायांग की टीका में नवांगी टीकाकार प्राचार्य अभयदेव सूरि प्रादि ने प्राचारांग के केवल प्रथम श्रुतस्कन्ध की पदसंख्या १८,००० मानी है। इस सम्बन्ध में यथास्थान आगे विवेचन किया जायगा।
प्राचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम नवब्रह्मचर्य है और इसमें निम्नलिखित ६ अध्ययन हैं :
शस्त्रपरिमा, मोकविजय, शीतोष्णीय, सम्यक्त्व, लोकसार (पावंति),धूत, महापरिक्षा, विमोक्ष (विमोह) पौर उपधानश्रुतः । आचारांग सूत्र में ये ९ मध्ययन इसी क्रम से दिये हुए हैं। प्राचारांग नियुक्तिकार तथा वृत्तिकार
" (क) घेणं मंगट्टाए पड़मे अंगे. दो सुयक्खंघा, पणवीसं प्रज्मयणा, पंचासीइं उद्दे सणकाला, पंचासोई समुद्दे सणकाला, अट्ठारस पदसहस्साई पदग्गेणं
[समवायांग, (पू० घासीलालजी म.) पृ० ६५७] . (ब) पायारस्स एणं भगवमो समिपागस्स भट्ठारसपयसहस्साणि पयग्गेणं पण्णताई
- वही, पृ० २३२ से वं अंगठ्याए पड़ने भंगे, दो सुपक्संधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीई उद्देसणकाला, पासीह समुद्देमणकाला, अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं.
[नन्दी सूत्र, (पू० घासीलालजी म०) पृ० ५४८] . नव बभबेरमइयो अट्ठारस पयसहस्सियो वेभो । हवा य सपंच सो बहु - बहुत्तरमो पयग्गेणं ॥
[पाचारांग नियुक्ति] सपनवब्रह्मवाभिधानाध्ययनात्मकप्रथमश्रुतस्कन्धरूपः तस्यैव चेदं पदप्रमाणं न पूलामाम्, यवाह- "नवभरमामो अट्ठारस पयसहस्सिमो वेग्रो, हवइ य सपंच चूलो बहुबहुत्तरमो पयम्नेणं ॥१॥ ति । यच्च सचूलिकाकस्येति विशेषणं तत्तस्य चूलिकासत्ता प्रतिपादनार्थम् न तु पदप्रमाणामिषानार्थम् । यतोऽवाचि नन्दी टीकाकृता" -- "मट्ठारस पपसहस्साणि पुण पढमसुयक्षस्स, नव बंभरमझ्यस्स पमारणं विचित्तत्यारिणय सुत्तारिण मुस्बएसमो तेसि प्रत्यो जाणिव्यो। [समवायांग टीका (माचार्य अभयदेव सूरि)] सत्यपरिष्णा लोगविजमो य सीउसरिणज्ज सम्मत्तं । तह सोनसार नामं, धुतं तह महापरिण्णा य ।। ३१ ।। पखए य विमोक्ता उहाण सुयं च नवमगं भरिणयं । ................................ || ६२॥
[भाचारांग नियुक्ति]
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