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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग - शिक्षण कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष इन छः वेदांगों तथा मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र एवं पुराण इस कार कुल मिला. कर चौदह विदामों का सम्यकरूपेण अध्ययन किया। तत्कालीन शिक्षा प्रणाली के अनुसार पारगामी विद्वान् बनने के पश्चात् प्रार्य सुधर्मा ने अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। उनके पास ५०० छात्रों के नियमित अध्ययन से यह अनुमान लगाया जाता है कि उनकी गणना उस समय के बहुत उच्चकोटि के विद्वानों में की जाती रही होगी। उस समय की शिक्षा प्रणाली के तलस्पर्शी विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन जनमानस में ज्ञान-पिपासा और शिक्षा के प्रति अभिरुचि पर्याप्त मात्रा में विद्यमान थी, पर वस्तुतः लोगों का शास्त्रीय पाण्डित्य की भोर जितना मधिक झुकाव था उतना अध्यात्म-चिन्तन की अोर नहीं था। सत्कालीन पार्मिक स्थिति : ऐसा प्रतीत होता है कि उन दिनों कतिपय अंशों में ब्राह्मण क्रियाकाण्डों पोर या-यागादि का धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में बड़ा महत्व माना जाता था मोर यज्ञानुष्ठान को ही सबसे बड़ा धर्म समझा जाने लगा था। यही कारण था कि उस समय यत्र-तंत्र, यदा-कदा बड़े-बड़े आयोजनों के साथ समारोहपूर्वक यज्ञ किये जाते थे। उन यज्ञों में यजमानों द्वारा यज्ञानुष्ठान कराने वाले विद्वानों और बाह्मणों को निमन्त्रित कर बड़ी-बड़ी दक्षिणाएं दी जाती थीं। वेद-वेदांगों के प्रकाण्ड पण्डित मार्य सुधर्मा को उस समय किये जाने वाले अनुष्ठानों में बुलाया जाता रहा होगा। इस प्रकार का विश्वास करने के लिये उनका सोमिल द्वारा बनष्ठित यज्ञ में सम्मिलित होना पर्याप्त प्रमाण है। ५०० विद्यार्थी सदा भार्य मुषर्मा की सेवा में रह कर उनसे विद्याध्ययन करते थे, यह तथ्य इस बात का बोतक है कि प्रार्य सुधर्मा प्रकाण्ड पण्डित होने के साथ-साथ पर्याप्तरूपेण साधनसम्पन्न एवं समृद्ध भी थे। दीक्षा से पूर्व का जीवन श्रमण भगवान महावीर के पास दीक्षित होने से पूर्व के किसी भी गणधर के जीवन का पूर्ण विवरण जैन वाङ्मय में उपलब्ध नहीं होता। केवल अावश्यक नियुक्ति में भगवान् महावीर के ग्यारहों गणधरों के नाम, ग्राम, गोत्र, जन्म-नक्षत्र, जाति, माता-पिता के नाम, शैक्षणिक योग्यता, शिष्य-परिवार, तात्त्विक शंका और दीक्षा के समय उनकी आयु आदि का विवरण दिया गया है। इससे अधिक, दीक्ष से पूर्व का गणधरों के गहस्थ-जीवन का कोई विवरण प्राज जैन अथवा जैनेतर ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता। यदि इस दिशा में प्रयास किये जायं तो अन्धेरे में छिपे अनेक ऐतिहासिक महत्व के तथ्य प्रकाश में लाये जा सकते हैं। __इन्द्रभूति गौतम के जीवन-परिचय में अपभ्रंश भाषा के कवि रयधू द्वारा रचित "महावीरचरित" के आधार पर जिस प्रकार कुछ नये तथ्य विद्वानों के ममक्ष प्रस्तुत किये गये हैं उसी प्रकार प्रायं सुधर्मा के गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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