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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग
केवलिकाल का प्रादुर्भाव चांवीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर का निर्वाण होते ही हमारे देश से तीर्थकरकाल की समाप्ति हुई। तदनन्तर केवलिकाल प्रारम्भ होता है। तीर्थकरंकाल और केवलिकाल में यह अन्तर है कि केवलिकाल में तीर्थंकरकाल की तरह तीर्थंकरों के ३४ अतिशय, ३५ वारणी के अतिशय और अष्ट महाप्रातिहार्य नहीं रहते। भगवान् महावीर के धर्म-शासन में उनके सबसे ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम हुए। गुरुभक्ति के प्रगाढ़ शुभराग के कारण इन्द्रभूति को भगवान् महावीर के जीवनकाल में केवलज्ञान की उपलब्धि नहीं हुई। - कोटि-कोटि सूर्यों से भी अधिक प्रकाश वाले अनन्त केवलज्ञान के धारक भगवान् महावीर के सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते ही प्रार्य वसुधा से ज्ञानसूर्य प्रस्त होगया। विशिष्ट अतिशय और अनन्तज्ञानी तीर्थकर भगवान महावीर का निर्वाण होते ही सारा भूमण्डल अन्धकारपूर्ण हो गया। उसी रात प्रथम गणधर महामुनि इन्द्रभूति गौतम के अन्तर में केवलज्ञानरूपी सूर्य का उदयं हुआ, उससे फिर समस्त भूमण्डल केवलज्ञानालोक से आलोकित हो गया।
_____ इन्द्रभूति गौतम से केवलिकाल प्रारम्भ होता है अत: पहले यहां उनका परिचय दिया जा रहा है।
..निहि ठागदि लोगधयामिया नं नहा अग्हतेहिं वाच्छिज्जमाहि, अंग्हतपणानं घम्मे वांच्छिग्जमागो, गुबगा वोच्छिन्नमाणे।
[स्थानांग, स्थान ३]
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