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वर्षीदान
विद्याधर शुक्लध्यान शैलेशी अवस्था
(४) प्रभंकर, (५) चन्द्राभ, (६) सूर्याभ, (७) शुक्राभ, (८) सुप्रतिष्ठ और (९) रिष्टाभ नामक नौ लोकान्तिक विमानों में रहने वाले देवों में से मुख्य ९ देव, जो शाश्वत परम्परा के अनुसार तीर्थंकरों द्वारा दीक्षा ग्रहण करने से एक वर्ष पूर्व उनसे दीक्षा ग्रहण करने एवं संसार का कल्याण करने की प्रार्थना करने के लिये उनके पास पाते हैं । ये देव एक भवावतारी होने के कारण लोकान्तिक और विषय-वासना से प्राय: विमुक्त होने के कारण देवर्षि भी कहलाते हैं। - दीक्षा-ग्रहण से पूर्व प्रतिदिन एक वर्ष तक तीर्थंकरों द्वारा दिया
जाने वाला दान । - विशिष्ट प्रकार की विद्याओं से युक्त मानव जाति का व्यक्ति-विशेष। - राग-द्वेष की अत्यन्त मन्द स्थिति में होने वाला चतुर्थ ध्यान । - चौदहवें गुणस्थान में मन, वचन एवं काय-योग का निरोध होने
पर शैलेन्द्र-मेरु-पर्वत के समान निष्कम्प-निश्चल ध्यान की पराकाष्ठा पर पहुंची हुई स्थिति । - सम्यक्रूपेण यथार्थ तत्त्व-श्रद्धान । - दीक्षा, प्रायु एवं ज्ञान की दृष्टि से स्थिरता प्राप्त व्यक्ति । स्थविर तीन प्रकार के होते हैं-(१) प्रवज्यास्थविर, जिनका २० वर्ष का दीक्षाकाल हो, (२) वय-स्थविर, जिनकी प्रायु ६० वर्ष या इससे अधिक हो गई हो तथा (३) श्रुत-स्थविर, जिन साधुत्रों ने स्थानांग, समवायांग प्रादि शास्त्रों का विधिवत् ज्ञान
प्राप्त कर लिया हो। - दस कोटाकोटि पल्य का एक सागर या सागरोपम कहलाता है ।
सम्यक्त्व
स्थविर
सागर-सागरोपम
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