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गोशालक का नामकरण]
भगवान् महावीर
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वृद्ध ने उत्तर दिया-"यदि तुम मुझ से पूछते हो तो जब तक कि यह दशवी दशा (विक्षिप्तावस्था) प्राप्त न कर ले उससे पहले-पहले इसके पूर्वजन्म के वृत्तान्त को एक चित्रपट पर अंकित करवालो, जिसमें यह दृश्य अंकित हो कि भील ने बाण से चकवे पर प्रहार किया, चकवा घायल हो गिर पड़ा, चकवी उस चकवे की इस दशा को देखकर मर गई और उसके पश्चात् वह चकवा भी मर गया।"
"इस प्रकार का चित्रफलक तैयार करवा कर मंख को दो जिसे लिये-लिये यह मंख ग्राम-नगरादि में परिभ्रमण करे । कदाचित् ऐसा करने पर किसी तरह विधिवशात् इसकी पूर्वभव की भार्या भी मानवी भव को पाई हुई उस चित्रफलक पर अंकित चक्रवाक-मिथुन के उस प्रकार के दृश्य को देखकर पूर्वभव की स्मृति से इसके साथ लग जाय।"
"प्राचीन शास्त्रों में इस प्रकार के वृत्तान्त सुने भी जाते हैं। इस उपाय से आशा का सहारा पाकर यह भी कुछ दिन जीवित रह सकेगा।"
वृद्ध की बात सुनकर केशव ने कहा-"आपकी बुद्धि की पहुँच बहुत ठीक है। आप जैसे परिणत बुद्धि वाले पुरुषों को छोड़कर इस प्रकार के विषम अर्थ का निर्णय कौन जान सकता है ?"
इस प्रकार वृद्ध की प्रशंसा कर केशव ने मंख से सब हाल कहा । मंख बोला-"तात ! इसमें क्या अनचित है ? शीघ्र ही चित्रपट को तैयार करवा दीजिये । कुविकल्पों की कल्लोलमाला से आकुल चित्त वाले के समाधानार्थ यही उपक्रम उचित है।"
___मंख के अभिप्राय को जानकर केशव ने भी यथावस्थित चक्रवाक-मिथन का चित्रपट पर आलेखन करवाया और वह चित्रफलक और मार्ग में जीवननिर्वाह हेतु संबल के रूप में द्रव्य मंख को प्रदान किया।
. मंख उस चित्रफलक और एक सहायक को साथ लेकर ग्राम, नगर सन्निवेशादि में बिना किसी प्रकार का विश्राम किये आशापिशाचिनी के वशीभूत हो धूमने लगा। मंख उस चित्रफलक को घर-घर और नगर के त्रिकचतुष्क एवं चौराहों पर ऊंचा करके दिखाता और कुतूहल से जो भी चित्रपट के विषय में उससे पूछता उसे सारी वास्तविक स्थिति समझाता । निरन्तर विस्तार के साथ अपनी आत्मकथा कहकर यह लोगों को चित्रफलक पर अंकित चक्रवाक-मिथुन की ओर इंगित कर कहता- “देखो, मानसरोवर के तट पर परस्पर प्रेमकेलि में निमग्न यह चकवा-चकवी का जोड़ा किसी शिकारी द्वारा छोड़े गये बाण से शरीर त्याग कर एक दूसरे से बिछुड़ गया। इस समय यह प्रियमिलन के लिये छटपटा रहा है।"
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