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प्रार्य व्यक्त
भगवान् महावीर
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थी कि ब्रह्म के अतिरिक्त सारा जगत मिथ्या है । भगवान महावीर से अपनी शंका का सम्यक समाधान पाकर इन्होंने भी पाँच सौ छात्रों के साथ पचास वर्ष की वय में प्रभु के पास धमण-दीक्षा ग्रहण की। बारह वर्ष तक छद्मस्थ साधना करके इन्होंने भी केवलज्ञान प्राप्त किया और अठारह वर्ष तक केवली-पर्याय में रहकर भगवान् के जीवनकाल में ही एक मास के अनशन से गुणशील चैत्य में अस्सी वर्ष की वय में सकल कर्म क्षय कर मुक्ति प्राप्त की।
५. सुधर्मा पंचम गणधर सुधर्मा 'कोल्लाग' सन्निवेश के अग्नि वेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम भद्दिला और पिता का नाम धम्मिल था। इन्होंने भी जन्मान्तर विषयक संशय को मिटाकर भगवान् के चरणों में पांच सौ छात्रों के साथ दीक्षा ग्रहण की। ये ही भगवान् महावीर के उत्तराधिकारी आचार्य हुए। ये वीर निर्वाण के बीस वर्ष बाद तक संघ की सेवा करते रहे। अन्यान्य सभी गणधरों ने दीर्घजीवी समझ कर इनको ही अपने-अपने गण सँभला दिये थे। आप ५० वर्ष गहवास में एवं ४२ वर्ष छद्मस्थ-पर्याय में रहे और ७ वर्ष केवली रूप से धर्म का प्रचार कर १०० वर्ष की पूर्ण प्रायु में राजगह नगर में मोक्ष पधारे।
६. मंडित
छठे गणधर मंडित मौर्य सन्निवेश के वसिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजया देवी था । भगवान महावीर से आत्मा का संसारित्व समझ कर इन्होंने भी गौतम आदि की तरह तीन सौ पचास ३५० छात्रों के साथ श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। दीक्षाकाल में इनकी अवस्था तिरेपन वर्ष की थी। चौदह वर्ष साधना कर सड़सठ [६७] वर्ष की अवस्था में इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। भगवान् के निर्वाण-पूर्व इन्होंने भी सोलह वर्ष केवली-पर्याय में रह कर तिरासी [८३] वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में अनशनपूर्वक मुक्ति प्राप्त की।
७. मौर्यपुत्र सातवें गणधर मौर्यपुत्र मौर्य सन्निवेश के काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजया देवी था । देव और देवलोक सम्बन्धी शंका की निवत्ति होने पर इन्होंने भी तीन सौ पचास [३५०] छात्रों के साथ पैसठ वर्ष की वय में श्रमण दीक्षा स्वीकार की। १४ वर्ष छद्मस्थ भाव में रहकर उन्हासी [७६] वर्ष की अवस्था में इन्होंने तपस्या से केवलज्ञान प्राप्त किया और सोलह वर्ष तक केवली पर्याय में रहकर भगवान् के सामने ही
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