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________________ गौतम की जिज्ञासा का समाधान ] भगवान् महावीर गौतम की जिज्ञासा का समाधान एक दिन गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा - " भदन्त ! श्रापका अन्तेवासी सर्वानुभूति अनगार, जो गोशालक की तेजोलेश्या से भस्म कर दिया गया है, यहाँ कालधर्म को प्राप्त कर कहाँ उत्पन्न हुआ और उसकी क्या गति होगी ?" भगवान् ने उत्तर में कहा - " गौतम ! सर्वानुभूति अनगार आठवें स्वर्ग में अठारह सागर की स्थिति वाले देव के रूप से उत्पन्न हुआ है और वहां से च्यवन होने पर महाविदेह - क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध तथा मुक्त होगा ।" ६४६ इसी तरह सुनक्षत्र के बारे में भी गौतम द्वारा प्रश्न किये जाने पर भगवान् ने फरमाया - " सुनक्षत्र अनगार बारहवें अच्युत कल्प में बाईस सागर की देवायु भोग कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और वहां उत्तम करणी करके सर्व कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा । गौतम ने फिर पूछा - "भगवन् ! आपका कुशिष्य मंखलिपुत्र गोशालक काल प्राप्त कर कहाँ गया और कहाँ उत्पन्न हुआ ! प्रभु ने उत्तर में कहा - " गौतम ! गोशालक भी अन्त समय की परिणाम शुद्धि के फलस्वरूप छद्मस्थदशा में काल कर बारहवें स्वर्ग में बाईस सागर की स्थिति वाले देव के रूप में उत्पन्न हुआ है । वहाँ से पुनः जन्म-जन्मान्तर करते हुए वह सम्यग्दृष्टि प्राप्त करेगा । अन्त समय में दृढ़-प्रतिज्ञ के रूप से वह संयम धर्म का पालन कर केवलज्ञान प्राप्त करेगा और कर्मक्षय कर सर्व दुःखों का अन्त करेगा । " मेढ़ियग्राम से विहार करते हुए भगवान् महावीर मिथिला पधारे और वहीं पर वर्षाकाल पूर्ण किया । इसी वर्ष जमालि मुनि का भगवान् महावीर से मतभेद हुन और साध्वी सुदर्शना ढंक कुम्हार द्वारा प्रतिबोध पाकर फिर भगवान् के संघ में सम्मिलित हो गई । haara का सोलहवाँ वर्ष मिथिला का वर्षाकाल पूर्ण कर भगवान् ने हस्तिनापुर की ओर बिहार किया । उस समय गौतम स्वामी कुछ साधु समुदाय के साथ विचरते हुए श्रावस्ती १ भग. श., १५, सू. ५६० पु० ५३५ २ पियदसरणा वि पइरणोऽणुरागम्रो तमायं चिय पवण्णा । कोहियागणिदड्डत्थ ऐसा तरं भग्गुई || Jain Education International [विशेषावश्यक, गाथा २३२५ से ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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