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कुलकर : एक विश्लेषण] कालचक्र मौर कुलकर पिछले कुलकरों की तरह दण्ड व्यवस्था आदि में उनका सक्रिय योग नहीं होने के कारण इनको गौण मानकर केवल सात ही कुलकर गिने गये हों । ऋषभदेव को प्रथम भूपति होने व यौगलिक रूप को समाप्त कर कर्मभूमि के रूप में नवीन राज्य व्यवस्था स्थापित कर राजा होने के कारण कुलकर रूप में नहीं गिना गया हो और संभव है जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में कुल का सामान्य अर्थ मानव-समूह लेकर उनकी भी बड़े कुलकर के रूप में गणना कर ली गई हो।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में कुलकरों की संख्या इस प्रकार है :
"तीसे समाए पच्छिमे तिभाए पलिग्रोवमद्धभागावसेसे, एत्थ एणं इमे पण्णरस कूलगरा समप्पज्जित्था, तं जहा-सूमई, पडिस्सूई, सोमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, चक्खुमं, जसमं, अभिचन्दे, चन्दाभे, पसेणई, मरुदेवे, गाभी, उसभोत्ति ।"१
जैन साहित्य की तरह वैदिक साहित्य में भी इस प्रकार का वर्णन उपलब्ध होता है। वहां पर कुलकरों के स्थान पर प्रायः मनु शब्द प्रयुक्त हुआ है। मनुस्मृति में स्थानांग के सात कुलकरों की तरह सात महातेजस्वी मनु इस प्रकार बतलाये गये हैं :
(१) स्वयम्भू, (४) तामस, (७) वैवस्वत । (२) स्वारोचिष्, (५) रैवत, (३) उत्तम,
(६) चाक्षुष, यथा :- स्वायंभुवस्यास्य मनोः षड्वंश्या मनवोऽपरे ।
सृष्टवन्तः प्रजाः स्वाःस्वाः महात्मानो महौजसः ।। स्वारोचिषश्चोत्तमश्च तामसो रैवतस्तथा । चाक्षषश्च महातेजा विवस्वत्सुत एव च ॥ स्वायम्भुवाद्याः सप्तैते मनवो भूरि तेजसः ।
स्वे स्वेऽन्तरे सर्वमिदमुत्पाद्यापुश्चराचरम् ।। अन्यत्र चौदह मनुषों का भी उल्लेख मिलता है -- (१) स्वायम्भुव, (६) चाक्षुष, (११) धर्म सारिण, (२) स्वारोचिष, (७) वैवस्वत, (१२) रुद्र सावरिण, (३) प्रोत्तमि, (८) सारिण, (१३) रोच्य देव सावणि, (४) तापस,
(६) दक्षसावणि, (१४) इन्द्र सावणि । (५) रैवत, (१०) ब्रह्मसावणि, ' जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, पत्र १३२ २ मनुस्मृति, प्र. १/श्लो. ६१-६२-६३ 3 मोन्योर-मोन्योर विलियम संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी, पृ० ७८४
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