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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [मरिष्टनेमि का सार्य-प्रदर्शन. की अोर झपटा तथा यादवों से कहने लगा-"यादवो ! क्यों वृथा ही मेरे हाथ से मरना चाहते हो? अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, यदि प्राणों का त्राण चाहते हो तो कृष्ण और बलराम-इन दोनों ग्वालों को पकड़ कर मेरे सम्मुख उपस्थित कर दो।"
जरासन्ध की इस बात को सुनते ही यादव योद्धा आँखों से भाग पौर धनुषों से बाण बरसाते हुए जरासन्ध पर टूट पड़े। पर पकेले जरासन्ध ने ही तीव्र बाणों के प्रहार से उन अगणित योद्धाओं को वेध डाला। यादव सेना इधर-उधर भागने लगी।
- जरासन्ध के २८ पुत्रों ने एक साथ बलराम पर माक्रमण किया । एकाकी बलराम ने उन सब जरासन्ध-पुत्रों के साथ घोर संग्राम किया और जरासन्ध के देखते ही देखते उन अट्ठाइसों ही जरासन्ध-पुत्रों को अपने हल द्वारा अपनी पोर खींच कर मूसल के प्रहारों से पीस डाला।
अपने पुत्रों का युगपद्विनाश देखकर जरासन्ध ने क्रोधाभिभूत हो बलराम पर गदा का भीषण प्रहार किया । गदा-प्रहार से घायल हो रुधिर का वमन करते हुए बलराम मूच्छित हो गये। बलराम पर दूसरी बार गदा-प्रहार करने के लिए जरासन्ध को आगे बढ़ते देख कर अर्जुन विद्युत् वेग से जरासन्ध के सम्मुख प्रा खड़ा हुआ और उससे युद्ध करने लगा।
बलराम की यह दशा देखकर कृष्ण ने क्रुद्ध हो जरासन्ध के सम्मुख ही उसके प्रवशिष्ट १६ पुत्रों को मार डाला।
यह देख जरासन्ध क्रोध से तिलमिला उठा। "यह बलराम तो मर ही जायेगा, इसे छोड़ कर अब इस कृष्ण को मारना चाहिये" यह कहकर वह कृष्ण की भोर झपटा।
"भोहो! अब तो कृष्ण भी मारा गया" सब पोर यह ध्वनि सुनाई देने लगी। ___यह देख कर मातलि ने हाथ जोड़ कर अरिष्टनेमि से निवेदन किया"त्रिलोकना ! यह जरासन्ध मापके सामने एक तुच्छ कीट के समान है। मापकी उपेक्षा के कारण यह पृथ्वी को यादवविहीन कर रहा है। प्रभो! यकी माप जन्म से ही सावध (पापपूर्ण) कार्यों से पराम् मुख है, तथापि शत्रु द्वारा जो मापके कुल का विनाश किया जा रहा है, इस समय मापको उसकी उपेवा नहीं करनी चाहिये । नाथ ! अपनी थोड़ी सी लीला दिखाइये।"
परिष्टनेमि का शौर्य-प्रदर्शन और रुष्ण द्वारापरासंब-वध . मातलि की प्रार्थना सुन परिष्टनेमि ने बिना किसी प्रकार की उत्तेजना के सहज भाव में ही पौरंदर शंख का घोष किया। उस शंख के नाद से दसों
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