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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [दोनों सेनामों की ___महानेमि, अर्जुन और अनाधृष्टि निरन्तर जरासंध की सेना को अर्कतूल (आक की रूई) की तरह धुनते हुए आगे बढ़ने लगे। इन तीनों महारथियों ने शत्रु-सेना में प्रलय मचा दी। अर्जुन के गाण्डीव धनुष की टंकारों से जरासंघ की सेना के हृदय धड़क उठे, उसके द्वारा की गई शरवर्षा से दिशाएं ढंक गई और अंधकार सा छागया। तीव्र वेग से शत्रु-सेना में बढ़ते हुए अर्जुन से युद्ध करने के लिए दुर्योधन अपनी सेना के साथ उसके सम्मुख प्रा खड़ा हुआ। अनाधृष्टि रौधिर और महानेमि से रुक्मी युद्ध करने लगे। ___ इन छहों वीरों का बड़ा भीषण युद्ध हुआ । दुर्योधन, रुक्मी और रौधिर की रक्षार्थ जरासन्ध के अनेक योद्धा मिलकर अर्जुन अनाधृष्टि और महानेमि पर शस्त्रास्त्रों से प्रहार करने लगे । महानेमि ने रुक्मी के रथ को चूर-चूर कर दिया और उसके सब शस्त्रास्त्रों को काटकर उसे शस्त्र-विहीन कर दिया। शत्रुजय आदि सात राजाओं ने देखा कि रुक्मी महानेमि के द्वारा काल के गाल में जाने ही वाला है, तो वे सब मिलकर महानेमि पर टूट पड़े । शत्रुजय द्वारा महानेमि पर चलाई गई भीषण ज्वाला-मालाकुला-अमोघ शक्ति को अरिष्टनेमि की अनुज्ञा प्राप्त कर मातलि ने महानेमि के बाण में बज पारोपित कर विनष्ट कर दिया। इस तरह युद्ध भीषणतर होता गया। इस युद्ध में अर्जुन ने जयद्रथ और कर्ण को मार डाला । भीम ने दुर्योधन, दुःशासन आदि अनेक घृतराष्ट्र पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया। महाबली भीम ने जरासन्ध की सेना के हाथियों को हाथियों से, रथों को रथों से और घोड़ों को घोड़ों से भिड़ाकर शत्रु-सेना का भयंकर संहार कर डाला। युधिष्ठिर ने शल्य को, सहदेव ने शकुनि को रणक्षेत्र में हरा कर यमधाम पहुँचा दिया । महाराज समुद्रविजय के जयसेन और महीजय नामक दो पुत्र जरासन्ध के सेनापति हिरण्यनाभ से लड़ते हए युद्ध में काम पाये । सात्यकि ने भूरिश्रवा को मौत के घाट उतार दिया । महानेमि ने प्राग्योतिषपति भगदत्तको और उसके मदोन्मत्त हस्ति-श्रेष्ठ को मार डाला। यादव-सेना के सेनापति अनाधृष्टि ने जरासन्ध की सेना के सेनापति हिरण्यनाभ के साथ युद्ध करते हुए उसके धनुष के टुकड़े करके रथ को भी नष्ट कर डाला और उसे पदाति, केवल प्रसिपाणि देख कर भी अपने रथ से तलवार लिये कूद पड़े। दोनों सेनामों के सेनापतियों का अद्भुत प्रसियुद्ध बड़ी देर तक होता रहा । अन्त में मनापुष्टि ने अपनी तलवार से हिरण्यनाभ के सिर को धड़ से अलग कर दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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