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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
परशुराम को बताया है कि जो व्यक्ति उच्च सिंहासन पर बैठकर इन दाढों से भरे थाल में दाढों के पायस (खीर) के रूप में परिणत हो जाने पर उस खीर को खायेगा, वही व्यक्ति तुम्हारे प्राणों का अन्त करने वाला होगा। नैमित्तिक द्वारा की गई भविष्यवाणी सुनकर परशुराम ने सत्रागार मंडप बनवाया । उस विशाल मण्डप के बीचों बीच एक उच्च सिंहासन रखवाया और उस सिंहासन से संलग्न उस पीठ पर स्वयं द्वारा मारे गये क्षत्रियों की दाढ़ों से भरा थाल रख दिया । परशुराम ने उस विशाल सत्रागार में प्रतिदिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना प्रारम्भ कर दिया। उस सत्रागार मण्डप के चारों ओर परशुराम ने बहुत बड़ी संख्या में सशक्त सैनिकों को उस सिंहासन, थाल एवं मण्डप की रक्षा के लिये नियुक्त कर रखा है।"
अपनी माता के मुख से यह सारा वृत्तान्त सुनते ही सुभूम अपने पितघातक परशुराम का वध करने के दृढ़-संकल्प के साथ तत्काल परशुराम के नगर की ओर प्रस्थित हना । सत्रागार के द्वार पर पहुंचकर सुभम ने सत्रागार की रक्षा के लिये नियुक्त सशस्त्र सैनिकों का संहार कर डाला और विद्युत वेग से वह उस उच्च सिंहासन पर आसीन हो गया। उच्च सिंहासन पर बैठा सुभूम ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो लोहितवर्ण बाल रवि उदयाचल पर पा विराजमान हुआ हो। उसने क्षत्रियों की दाढ़ों से भरे थाल की ओर दृष्टि डालकर देखा। सुभूम के दृष्टिपात के साथ ही वे दाढ़ें अदष्ट शक्ति के प्रभाव से खीर के रूप में परिणत हो गईं। सुभूम तत्काल उस खीर को खाने लगा।'
यह देखकर परशुराम के हितचिन्तकों एवं सत्रागार के आहत रक्षकों ने तत्काल परशुराम की सेवा में उपस्थित हो उनसे निवेदन किया-"देव ! सिंह शावक के समान अति तेजस्वी एक बालक हमें हताहत कर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ गया है । क्षत्रियों की दंष्ट्राओं से भरा वह थाल दाढ़ों के स्थान पर पायस से भर गया है। वेष-भूषा से ब्राह्मण सा प्रतीत होने वाला वह बालक 'उस पायस को खा रहा है। उस तेजस्वी बालक की आंखों से, अंग-प्रत्यंग से और रोमरोम से तेज एवं प्रोज बरस रहा है । भला मानव का तो क्या साहस देवगण भी उसकी ओर आँख उठाकर देखने में भय विह्वल हो उठते हैं।"
आरक्षकों की बात सुनते ही भविष्यवक्ता की भविष्यवाणी परशुराम के कर्णरन्ध्रों में मानो प्रतिध्वनित होने लगी और वह परम कोपाविष्ट हो तत्काल सत्रागार मण्डप में पहुँचा । वहाँ उसने देखा कि एक बालक उस उच्च सिंहासन पर बैठा हा सिंह के समान निर्भीक और निश्शंक हो थाल में भरी खीर खा रहा है । परशुराम ने कड़क कर कर्कश स्वर में सुभूम को सम्बोधित करते हुए
१ चउप्पन्न महापुरिसचरियं. पृ० १६६
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