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________________ भगवान् श्री शीतलनाथ भगवान् श्री सुविधिनाथ के बाद भगवान् श्री शीतलनाथ दसवें तीर्थंकर हुए। पूर्वभव सुसीमा नगरी के महाराज पद्मोत्तर के भव में बहुत वर्षों तक राज्य का उपभोग कर इन्होंने 'स्रस्ताघ' नाम के प्राचार्य के पास संयम ग्रहण किया और विशिष्ट प्रकार की तपः साधना से तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया। अन्त समय में प्रनशन की आराधना से काल प्राप्त कर प्राणत स्वर्ग में बीस सागर की स्थिति वाले देव हुए । अन्म भद्दिलपुर के राजा दृढ़रथ इनके पिता और नन्दादेवी इनकी माता थीं। वैशाख कृष्णा षष्ठो के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में प्रारगत स्वर्ग से च्यव कर पपोतर का जीव नन्दादेवी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। महारानी उसी रात्रि को महा मंगलकारी चौदह शुभ स्वप्न देखकर जागृत हुई। उसने महाराज के पास जाकर उन स्वप्नों का फल पूछा । उत्तर में यह सुनकर कि वह एक महान् पुण्यशाली पुत्र को जन्म देने वाली है, महारानी अत्यधिक प्रसन्न हई। गर्भकाल के पूर्ण होने पर माता नन्दा ने माघ कृष्णा द्वादशी को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में सुखपूर्वक पुत्ररत्न को जन्म दिया। प्रभु के जन्म से अखिल विश्व में शान्ति एवं प्रानन्द की लहर फैल गई। महाराज दृढ़रथ ने मन खोलकर जन्मोत्सव मनाया। नामकरण __ बालक के गर्भकाल में महाराज दृढरथ के शरीर में भयंकर दाह-ज्वर की पीड़ा थी जो विभिन्न उपचारों से भी शान्त नहीं हुई, पर एक दिन नन्दादेवी के कर-स्पर्श मात्र से वह वेदना शान्त हो गई और तन, मन में शीतलता छा गई। प्रतः सबने मिलकर बालक का नाम शीतलनाथ रखा।' १ राज्ञः सन्तप्तमप्यंगं, नन्दास्पर्शन शीत्यभूत् । गर्मस्पेऽस्मिन्निति तस्य, नाम शीतल इत्यभूत् ।। त्रिष० ३।८।४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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