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परिनिर्वाण]]
भगवान् श्री सुविधिनाथ
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वादी
छः हजार (६,०००) साधु
दो लाख (२,००,०००) साध्वी
एक लाख बीस हजार (१,२०,०००) । श्रावक
दो लाख उन्तीस हजार (२,२६,०००) श्राविका
- चार लाख बहत्तर हजार (४,७२,०००)
परिनिर्वाण कुछ कम एक लाख पूर्व तक संयम का पालन कर जब प्रभ ने अपना पायु-काल निकट समझा तब एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर एक मास का अनशन धारण किया, फिर योगनिरोध करते हुए चार अघाति-कर्मों का क्षय कर भाद्रपद कृष्णा नवमी के दिन मूल नक्षत्र में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर निर्वाण पद प्राप्त किया।
__ कहा जाता है कि कालदोष से सुविधिनाथ के बाद साधुकर्म का विच्छेद हो गया और श्रावक लोग इच्छानुसार दान आदि धर्म का उपदेश करने लगे। संभव है यह काल ब्राह्मण संस्कृति के प्रचार-प्रसार का प्रमुख समय रहा हो।
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