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________________ विवाह और राज्य] भगवान् श्री चन्द्रप्रभ स्वामी २०३. .द ... * विवाह और राज्य युवावस्था सम्पन्न होने पर राजा ने उत्तम राजकन्याओं से प्रभु का पाणिग्रहण करवाया। हाई लाख पूर्व तक युवराज-पद पर रह कर फिर आप राज्य-पद पर अभिषिक्त किये गये और छः लाख पूर्व से कुछ अधिक समय तक राज्य का पालन करते हुए प्रभु नीति-धर्म का प्रसार करते रहे । इनके राज्य-काल में प्रजा सब तरह से सुख-सम्पन्न और कर्त्तव्य-मार्ग का पालन करती रही। बीक्षा और पारणा संसार के भोग्य-कर्म क्षीण हुए जानकर प्रभु ने मुनि-दीक्षा का संकल्प किया। लोकान्तिक देवों की प्रार्थना और वर्षीदान के बाद एक हजार राजाओं के साथ षष्ट-भक्त की तपस्या से इनका निष्क्रमण हुआ। पौष कृष्णा त्रयोदशी को अनुराधा नक्षत्र में सम्पर्ण पाप-कर्मों का परित्याग कर प्रभु ने विधिपूर्वक दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा के दूसरे दिन पाखण्ड के सोमदत्त राजा के यहां क्षीरान्न से प्रभु का पारणा हुआ । देवों ने पंच-दिव्य वर्षा कर दान की महिमा प्रकट की। केवलज्ञान तीन मास तक छयस्थ-चर्या में विचर कर फिर प्रभु सहस्राम्र वन में पधारे। वहां प्रियंग वृक्ष के नीचे शुक्ल ध्यान में ध्यानावस्थित हो गये। फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को शुक्लध्यान के बल से ज्ञानावरणादि चार घातिकर्मों का क्षय कर, प्रभु ने केवलज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति की। फिर देव-मानवों की विशाल सभा में श्रुत व चारित्र-धर्म की देशना देकर भगवान ने चतुर्विध संघ की स्थापना की । कुछ कम एक लाख पूर्व तक केवली पर्याय में रहकर प्रभु ने लाखों जीवों का कल्याण किया। धर्म परिवार यों तो महापुरुषों का परिवार “वसुधैव कुटुम्बकम्" होता है, फिर भी व्यवहारदृष्ट्या उनके उपदेशों का पालन एवं प्रसार करने वाले अधिक कृपापात्र होने से उनके धर्म-परिवार में गिने गये हैं जो इस प्रकार हैं : गण एवं गणधर . - तिरानवे (९३) दत्त मादि केवली - दस हजार (१०,०००) मनःपर्यवज्ञानी. -पाठ हजार (८,०००) अवधि ज्ञानी - पाठ हजार (८,०००) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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