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मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी चौदह पूर्वधारी
वैक्रिय लब्धिधारी
वादी
साधु साध्वी
श्रावक
श्राविका
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
दस हजार तीन सौ (१०,३०० ) दस हजार (१०,००० )
परिनिर्वाण
केवली बन कर प्रभु ने बहुत वर्षों तक संसार को कल्याणकारी मार्ग की शिक्षा दी ।
१ सत्तरिसय द्वार, गा० ३०६-३१०
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[ धर्म परिवार
'हजार तीन सौ (२,३०० ) सोलह हजार आठ सौ (१६,८००) नौ हजार छः सौ ( ६,६०० ) तीन लाख तीस हजार (३,३०,००० ) चार लाख बीस हजार ( ४,२०,००० ) दो लाख छिहत्तर हजार (२,७६,००० ) पांच लाख पाँच हजार (५,०५,००० )
फिर जब अन्त में प्रयुकाल निकट देखा तब एक मास का अनशन कर मंगसिर बदी एकादशी के दिन' चित्रा नक्षत्र में सम्पूर्ण योगों का निरोध कर सिद्ध-बुद्ध - मुक्त हो गए ।
आपकी कुल आयु तीस लाख पूर्व की थी जिसमें सोलह पूर्वांग कम साढ़े सात लाख पूर्व तक कुमार रहे, साढ़े इक्कीस लाख पूर्व तक राज्य किया और कुछ कम एक लाख पूर्व तक चारित्र धर्म का पालन कर प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया ।
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