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________________ प्रकाशकीय) इतिहास वस्तुतः विश्व के धर्म, देश, संस्कृति, समाज अथवा जाति के प्राचीन से प्राचीनतम अतीत के परोक्ष स्वरूप को प्रत्यक्ष की भाँति देखने का दर्पण तुल्य एकमात्र वैज्ञानिक साधन है। किसी भी धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, समाज एवं जाति के अभ्युदय, उत्थान, पतन, पुनरुत्थान, आध्यात्मिक उत्कर्ष एवं अपकर्ष में निमित्त बनने वाले लोक-नायकों के जीवनवृत्त आदि के क्रमबद्ध शृंखलाबद्ध संकलन-आलेखन का नाम ही इतिहास है। अभ्युदय, उत्थान, पतन की पृष्ठभूमि का एवं उत्कर्ष तथा अपकर्ष की कारणभूत घटनाओं का निधान होने के कारण इतिहास मानवता के लिए, भावी पीढ़ियों के लिए दिव्य प्रकाश-स्तम्भ के समान दिशावबोधक-मार्गदर्शक माना गया है। भूतकाल में सुदीर्घ अतीत से लेकर अद्यावधि किस धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, समाज, जाति अथवा व्यक्ति ने किस प्रशस्त पथ पर आरूढ़ हो उस पर निरन्तर प्रगति करते हुए उत्कर्ष के, परमोत्कर्ष के उच्चतम शिखर पर अपने आपको अधिष्ठित किया और किसने कब-कब किस-किस प्रकार की स्खलनाएँ कर, किस प्रकार कुपथ पर आरूढ़ हो धर्म, संस्कृति, राष्ट्र, समाज, जाति अथवा अपने आपका अधःपतन किया, रसातल की ओर प्रयाण किया- इतिहास में निहित इन तथ्यों से मार्गदर्शन प्राप्त कर प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समाज, प्रत्येक जाति, प्रत्येक राष्ट्र प्रगति के प्रशस्त पथ पर आरूढ़ हो अपने आपको, अपनी संस्कृति को और अपने धर्म को उन्नति के उच्चतम शिखर पर प्रतिष्ठापित कर समष्टि का कल्याण करने में सक्षम हो सकता है। यही कारण है कि मानव सभ्यता में इतिहास का आदि काल से अद्यावधि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। संक्षेप में कहा जाय तो इतिहास वस्तुतः अतीत के अवलोकन का चक्षु है। (१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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