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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [संवद्धन तदनन्तर स्नान आदि से निवृत्त हो भरत महाराज दिव्य वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो हस्तिरत्न पर प्रारूढ़ हुए । उनके प्रागे अनुक्रमश: प्रष्ट मंगल, पूर्ण कलश, झारी, दिव्य छत्र, छत्रधर, ७ एकेन्द्रिय रत्न, १६ हजार देव, बत्तीस हजार महाराजा, सेनापति आदि ४ मनुष्य रत्न, स्त्री रत्न, बत्तीस-बत्तीस हजार ऋतु कल्याणिकाएं-जनपदकल्याणिकाएं, बत्तीस हजार बत्तीस प्रकार के नाटक करने वाले, ३६० रसोइये, अठारह श्रेणी प्रश्रेणियां, राजा, ईश्वर, तलवर, सार्थवाह एवं गायक, वादक आदि अपार जनसमुद्र चल रहा था। महाराज भरत के सम्मुख उत्कृष्ट प्रश्वाभरणों से सजाये हुए श्रेष्ठ जाति के घोड़े, दोनों पावों में मदोन्मत्त गजराज और पृष्ठ भाग में अश्वरथ चल रहे थे। षट्खण्ड की साधना के पश्चात् विनीता नगरी में महाराज भरत ने जिस कुबेरोपम ऋद्धि के साथ नगर में प्रवेश किया था उसी प्रकार की अनुपम ऋद्धि के साथ महाराज भरत अपने राजप्रासाद से प्रस्थान कर विनीता नगरी के मध्य में होते हुए राजधानी के ईशान कोण में निर्मित प्रतिविशाल एवं परम रम्य अभिषेक मण्डप के पास आये । वहां अभिषेक हस्तिरत्न के होदे से नीचे उतर कर स्त्री रत्न और चौसठ हजार कल्यारिणका स्त्रियों एवं बत्तीस हजार बत्तीस प्रकार के नाटक करने वाली रमणियों के साथ उन्होंने अभिषेक मण्डप में प्रवेश किया और वे अभिषेक-पीठिका के पास प्राये । अभिषेक पीठिका को प्रदक्षिणावर्त करते हुए वे पूर्व दिशा के सोपान से अभिषेक पीठिका पर चढ़े और उस पीठिका के मध्य भाग में अवस्थित सिंहासन पर पूर्वाभिमुख हो बैठ गये। भरत महाराज के सिंहासनारूढ़ होने के पश्चात ३२ हजार राजानों ने मण्डप में प्रवेश कर अभिषेक पीठिका की प्रदक्षिणा की मोर उत्तर दिशा के सोपान से अभिषेक पीठिका पर वे महाराज भरत के पास माये । उन्होंने सांजलि शीश झुका जय-विजय के घोषों से भरत महाराज का अभिवादन एवं वर्धापन किया। तदनन्तर वे थोड़ी ही दूरी पर भरत महाराज के पास बैठ गये और उनकी सेवा सुश्रूषा एवं पर्युपासना करने लगे। तत्पश्चात् भरत महाराज के सेनापति रत्न, सार्थवाहरत्न , वाद्धिक रत्न और पुरोहित रत्न ने अभिषेक मण्डप में प्रवेश और अभिषेक पीठिका की प्रदक्षिणा की । वे चारों दक्षिण दिशा के सोपान से अभिषेक पीठिका पर चढ़े। उन्होंने भी सांजलि शीश झुका जय-विजय के घोषों के साथ भरत महाराज का पाभिवादन अभिवपिन किया और उनसे थोड़ी दूरी पर पास में बैठ कर वे भरत महाराज की पर्यपासना करने लगे। तदनन्तर महाराज भरत ने पाभियोगिक देवों को बुला कर कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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