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________________ पुस्तक श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराओं के मध्य एक योजक कड़ी के रूप में विकसित यापनीय सम्प्रदाय ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हुए मा जनसाधारण एप पिएपण जी-माअज्ञात ही बना रहा । इस सम्प्रदाय के सम्बन्ध में सम्पूर्ण और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराने वाली इस कृति में लेखक ने इस सम्प्रदाय के उद्भव, विकास, उसके गच्छों, कुलों, अन्वयों, प्रमुख कृतियों एवं सिद्धान्तों आदि के गहन चिन्तन . के पश्चात एक तर्कपुरस्सर विवरण प्रस्तुत किया है । अनेक ग्रन्थ जिन्हें जैनों के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय अपनी-अपनी परम्पराओं से सम्बद्ध मानने का दावा प्रस्तुत करते रहे हैं या फिर एक परम्परा उनपर अपना प्रभुत्व जताने के व्यामोह से ग्रस्त रही है, के सम्बन्ध में लेखक के निष्कर्ष एक नवीन दृष्टि प्रदान करते हैं। जहाँ तक यापनीय सम्प्रदाय की सैद्धान्तिक मान्यताओं का प्रश्न है लेखक ने न केवल उनका प्रस्तुतीकरण किया है अपितु उनके ऐतिहासिक विकास-क्रम को भी संजोने का प्रयास किया है जिससे सम्प्रदायों के विकासक्रम को सम्यकरूपेण समझा जा सके । लेखक का यह निष्कर्ष भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि इस सम्प्रदाय के सिद्धान्तों की सही समझ आज भी जैनों के श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों के मध्य की खाई को पाट सकती है। प्रस्तुत कृति यापनीय सम्प्रदाय से सम्बन्धित सम्पूर्ण तथ्यों को साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों की कसौटी पर कसते हुए, साम्प्रदायिक व्यामोहों से ऊपर उठकर उनका दो टूक विवेचन प्रस्तुत करती है और यही इसकी विशेषता है।
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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