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जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न
निर्ग्रन्थ परम्परा में सचेलकत्व और अचेलकल्व का प्रश्न अति प्राचीनकाल से ही विवाद का विषय रहा है। जैनों के वर्तमान में जो श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय हैं, उनके बीच भी विवाद का प्रमुख बिन्दु यही है । पहले भी इसी विवाद के कारण उत्तर भारत का निग्रन्थ संघ विभाजित हुआ था और यापनीय सम्प्रदाय अस्तित्व में आया था। दूसरे शब्दों में इसी विवाद के कारण जैनों में विभिन्न सम्प्रदाय अर्थात् श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय निर्मित हुए हैं। यह समस्या मूलतः मुनि-आचार से ही सम्बन्धित है, क्योंकि गृहस्थ उपासक, उपासिकाएँ और साध्वियाँ तो तीनों ही सम्प्रदायों में सचेल ( सवस्त्र ) ही मानी गयी हैं। __ मुनि के सम्बन्ध में दिगम्बर परम्परा की मान्यता यह है कि मात्र अचेल ( नग्न ) ही मुनि पद का अधिकारी है। जिसके पास वस्त्र है, चाहे वह लंगोटी मात्र ही क्यों न हो, वह मुनि नहीं हो सकता है।' इसके विपरीत श्वेताम्बरों का कहना है कि मुनि अचेल (नग्न ) भी होता है और सचेल (सवस्त्र) भी। साथ ही वे यह भी मानते हैं कि वर्तमानकाल की परिस्थितियां ऐसी हैं जिसमें मुनि का अचेल ( नग्न ) रहना उचित नहीं है । इन दोनों परम्पराओं से भिन्न यापनीयों की मान्यता यह है कि अचेलता ही श्रेष्ठ मार्ग है, किन्तु आपवादिक स्थितियों में मुनि वस्त्र रख सकता है। इस प्रकार जहाँ दिगम्बर परम्परा एकान्तरूप से अचेलकत्व को ही मुनि-मार्ग या मोक्ष-मार्ग मानती है, वहाँ श्वेताम्बर परम्परा वर्तमान में जिनकल्प ( अचेल-मार्ग) का उच्छेद दिखाकर सचेलता पर ही बल देती है। यापनीय परम्परा का दृष्टिकोण इन दोनों अतिवादिताओं के मध्य समन्वय करता है । वह मानती है कि सामान्यतया तो मुनि को अचेल या नग्न ही रहना चाहिये, क्योंकि वस्त्र १. णिच्चेलमाणिपत्तं उवइट्ठ परमजिण वरिंदेहि ।
एक्को वि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ॥ सूत्रप्राभृत-१० २. (अ) एगयाञ्चेलए होइ सचेले यावि एगया। उत्तराध्ययन-२/१३ ३. उस्सग्गियलिंगकदस्स लिंगमुस्सग्गियं तयं चेव ।
अववादियलिंगस्स वि पसत्थमुवसग्गियं लिंग ॥ भगवतीमाराधना-७६.
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