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________________ ४१८ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय दोनों मान्यताओं में समन्वय स्थापित करने हेतु धवला - टीका में सर्वप्रथम छः प्रकार के आहारों की कल्पना की गयी है १. नोकर्माहार २. कर्माहार ३. कवलाहार ४. लेप्याहार ५. ओजाहार ( ओष्म ) और ६. मन आहार और यह माना गया कि केवली नोकर्माहार करते हैं ।" ज्ञातव्य है कि जहाँ न्यायकुमुदचन्द्र में केवली के नोकर्माहार और कर्माहार ऐसे दो आहार माने गये हैं, वहाँ धवला में मात्र एक नोकर्माहार ही माना गया है । छः प्रकार के इन आहारों का उल्लेख सर्वप्रथम धवलाटीका में ही हुआ है। उससे पूर्व के किसी भी श्वेताम्बर, दिगम्बर ग्रंथ में यह उल्लेख नहीं मिलता है । वस्तुतः धवलाकार की समस्या यह थी कि एक ओर षट्खण्डागम में सयोगी केवली को जो आहारक माना गया था उसकी संगति आचार्य कुन्दकुन्द की इस मान्यता से बैठानी थी, जिसके अनुसार केवली में आहार - निहार नहीं है । परवर्ती दिम्बर आचार्य देवसेन आदि ने भाव संग्रह में धवला का अनुसरण करते हुए इन्हीं ६ आहारों का उल्लेख किया है, किन्तु इससे पूर्व के श्वेताम्बर मान्य आगमों में यथा -सूत्रकृतांग, निर्युक्ति आदि में तीन प्रकार के आहारों का ही उल्लेख मिलता है । उसमें कहा गया है कि आहार तीन प्रकार के हैं- ओजाहार, १. अत्र कवललेपोष्ममनः कर्माहारान् परित्यज्य नोकर्माहारो ग्राह्यः, अन्यथाहारकालविरहाभ्यां सह विरोधात् । - षट्खण्डागम, १/१/१७६ की धवलाटीका ( ९वीं शती) २. ( अ ) णोकम्मकम्महारो कवलाहारो य लेप्पहारो य । उज्ज मणो वि य कमसो आहारो छव्विहो ओ ॥ णोकम्मकम्महारो जीवाणं होइ चउगइगयाणं । कवलाहारो णरपसु रुक्खेसु य लेप्पमाहारो ॥ पक्खीणुज्जाहारो अडयमज्झेसु देवेसु मणाहारो चउव्विहो णत्थि केवलिणो ॥ णोकम्मकम्महारो उवयारेण तस्स आयमे भाणिओ । ण हु णिच्छण सो वि हु स वीयराओ परो जम्हा ॥ माणा । - भाव संग्रह, ११०-११३ (ब) नोकर्मकर्मनामा च लेपाहारोऽथ मानसः । ओजश्च कवजाहारश्चेत्याहारो हि षड्विधः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only - भावसंग्रह, २२६ www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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