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________________ ४०० : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय आचार्य हरिभद्र ने उक्त यापनीय सन्दर्भ की विस्तृत व्याख्या भी की है। वे लिखते हैं जोव ही सर्वोत्तम धर्म मोक्ष को साधना कर सकता है और स्त्री जोव है, इसलिए वह सर्वोत्तम धर्म को आराधक क्यों नहीं हो सकतो ? यदि कहा जाय कि सभी जोव तो मुक्ति के अधिकारी नहीं है जैसे अभव्य, तो इसका उत्तर यह है कि सभी स्त्रियाँ तो अभव्य भी नहीं होती है। पुनः यह तर्क भी दिया जा सकता है कि सभी भव्य भी तो मोक्ष के अधिकारी नहीं हैं-जैसे मिथ्यादृष्टि-भव्यजीव, तो इसका उत्तर यह है कि सभी स्त्रियाँ तो सम्यग्दर्शन के अयोग्य भी नहीं कही जा सकती हैं। यदि इस पर यह कहा जाय कि स्त्री के सम्यग्दष्टि होने से क्या होता है, पशु भी सम्यग्दृष्टि हो सकता है, किन्तु वह तो मोक्ष का अधिकारी नहीं होता है ? इसका प्रत्युत्तर यह है कि स्त्री पशु नहीं, मनुष्य है, यहाँ पुनः यह आपत्ति उठायो जा सकती है कि सभी मनुष्य भी ता सिद्ध नहीं होते, जैसे अनार्य क्षेत्र में या भोगभूमि में उत्पन्न मनुष्य, तो इसका प्रत्युत्तर यह है कि स्त्रियाँ आर्य देश में भी तो उत्पन्न होती है । यदि यह कहा जाय कि आर्य देश में उत्पन्न होकर भो असंख्यातवर्ष की आयुष्य वाले अर्थात् यौगलिक मुक्ति के योग्य नहीं होते हैं, तो इसका प्रत्युत्तर यह है कि सभो स्त्रियाँ असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाली भी नहीं होती हैं । पुनः यदि यह तर्क दिया जाय कि संख्यातवर्ष की आयुवाल होकर भी जो अति रमति हो, वे भी मुक्ति के पात्र नहीं होते हैं, तो इसका उत्तर यह है कि सभी स्त्रियाँ अतिक्ररमति भो नहीं होती। क्योंकि स्त्रियों में तो सप्तम नरक की आयुष्य बाँधने योग्य तीव्र रौद्र ध्यान का अभाव होता है । यह तो उसमें अतिक्रूरता के अभाव का तथा उसके करुणामय स्वभाव का प्रमाग है और इसलिए उसमें मुक्ति के योग्य प्रकृष्ट शुभभाव का अभाव नहीं माना जा सकता। पुनः यदि यह कहा जाय कि स्वभाव से करुणामय होकर भी जो मोह को उपशान्त करने में समर्थ नहीं होता है वह भी मक्ति का अधिकारी नहीं होता है, किन्तु ऐसा भी नहीं है, कुछ स्त्रियाँ मोह को उपशान्त करती हुई देखी जाती हैं। यदि यह कहा जाय कि मोह का उपमशन करने पर भी यदि कोई व्यक्ति अशुद्धाचारी है, तो वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। इसके निराकरण के लिए कहा गया है कि सभी स्त्रियाँ अशुद्धाचारी (दुराचारी) नहीं होती हैं। इस पर यदि कोई यह तर्क करे कि शुद्ध आचार वाली होकर भी स्त्रियां शुद्ध शरीर वालो नहीं होती इसलिए वे मोक्ष की अधिकारी नहीं है तो इसके प्रत्युत्तर में यह कहा गया कि सभी स्त्रियाँ तो अशुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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