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________________ [ xiii ] स्थल एवं कार्यक्षेत्र ३७३, उमास्वाति की उच्चै गर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा ( म० प्र० ) ३७४, उमास्वाति का जन्म स्थान नागोद ( म० प्र०) तत्त्वार्थ सूत्र की परम्परा का निर्धारण ३८५। ४ : यापनीय संघ की विशिष्ट मान्यताएँ ३८६ - ४९१ यापनीय संघ की विशिष्ट मान्यताएँ ३८६, श्वेताम्बर साहित्य में उल्लिखित यापनीय संघ की मान्यताएँ ३८७, दिगम्बर साहित्य में उल्लिखित यापनीयों की मान्यताएँ ३९१, स्त्री-मुक्ति, अन्यतैर्थिक मुक्ति एवं सवस्त्रमुक्ति का प्रश्न ३९२, गृहस्थमुक्ति का प्रश्न ४१०, केवली-भुक्ति का प्रश्न ४१५, केवली कवलाहार का निषेध क्यों ? ४२०, दिगम्बर परम्परा का पूर्वपक्ष ४२१, यापनीयों का उत्तरपक्ष ४२५, जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न ४३१, प्रस्तुत अध्ययन की स्रोत सामग्री ४३२, महावीर के पूर्व निर्ग्रन्थ संघ में वस्त्र की स्थिति ४३३, ऋषभ का अचेल धर्म ४३५, पार्श्व का सचेल धर्म ४३६, वस्त्र के सम्बन्ध में यापनीय दृष्टिकोण ४५६, निर्ग्रन्थ संघ में उपकरणों की विकास यात्रा ४६९, जिनकल्प और स्थविरकल्प ४७४, प्रतिलेखन/पिच्छी ४७६, पायपुंछन ( पात्रोंछन ) ४७९, पात्र ( कमण्डलु ), पंचमहाव्रत और उनकी भावनाएँ ४८७, रात्रि-भोजन निषेध-छठा व्रत ४९१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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