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प्राकृत वाक्यरचना बोध
परोक्ष
प्राकृत वर्तमान प्रेक्षांचके
पेच्छा आबभाषे
आभास वर्तमान शृणोति
सोहीम
(हेम० प्रा० व्या० ८।४।४४७) (५) विभक्तियों का व्यत्यय(क) वेदों में और प्राकृत में चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति
का प्रयोग विहित है।
(देखें वैदिक प्रक्रिया सू० २।३।६२ तथा हेम०प्रा० व्या० ८।३।१३१) (ख) तृतीया विभक्ति के स्थान में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
(वैदिक प्रक्रिया २।३।६३ तथा हेम०प्रा०व्या० ८।३।१३१) (६) बहुलं का प्रयोग
वैदिक व्याकरण में सब प्रकार के विधानों में बहुलं का व्यवहार होता है । प्राकृत भाषा के व्याकरण में भी सर्वत्र बहुलं का व्यवहार होता
(देखें, बहुलं छंदसि २।४।३९,७३ हेम० प्रा० व्या० ८।१।२,३) (७) अन्तिम व्यंजन का लोप
वैदिक संस्कृत में अंतिम व्यंजन का लोप होता है। इसी प्रकार प्राकृत भाषा में अंतिम व्यंजन का लोप व्यापक है
वैदिक रूप पश्चात्-पश्चा पश्चार्ध (वै. प्र. ५॥३॥३३) उच्चात् उच्चा
(तैत्ति० सं. २।३।१४) नीचात्-नीचा
(तैत्ति० सं. १।२।१४) विद्युत्-विद्यु
(अन्त्य लोपः छांदसः ऋग्वेद पृ. ४६६) युष्मान्-युष्मा
(वाज० सं. १।१३।१, शत० ब्रा० ११२।६) स्य:-स्य
(वै०प्र० ६।१।१३३)
प्राकृत रूप तावत्-ताव । यावत्-जाव । तमस्-तम । चेतस्--चेत । यशस् -जस । नामन्-नाम। (८) स्प को प आदेश
वैदिक भाषा में स्प को प हो जाता है। प्राकृत में भी स्प को प
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