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________________ ५६४ प्राकृत वाक्यरचना बोध द्रोही-दोही (१००) धंसा हुआ नाक-चिप्पड (वि) (१०८) धान्य-सस्सं (६०) धान्यागार-धण्णागारं (१०२) धुंआ-धुम्मो (६३) धूम्रपान-धूमपाणं (७५) नगर जन-नायरया (१०८) न भारी न हल्का-अगरुलहु (वि) नाम-अभिहाणं (१२) नास्तिक-णत्थिओ (वि) (६६) नियम-अभिग्गहो (१०४) निरर्थक—अट्ट मट्ट (वि) (दे०) (६८) निर्दोष-अणहो (६६) नौकर-चेड (दे०) (१०५) पडौसी, पडोसी-पाडोसिओ (६६) पतला-पत्तल (वि) (७०) पति-दइओ (१०३) पत्थर-पाहणो, पत्थरो (११) पथ्य-पच्छ (३६) पदार्थ-पयत्थो (४६) पद्य-पज्ज (१०३) परस्पर-परोप्परं,परुप्परं (२१,६३) परोसना-परीसणं, परिवेसणं (१६) पवित्र, निर्दोष---अणहो (६६) पसीना-सेअं (३२) पाचन-पायणं (७२) पात्र—पत्तं (६२) पानी से गीला-उदओल्लं (६८) पाप-पावं (११) पाप-अणो (६६) पापड--पप्पडो (४६) पास-अब्भास (वि) (१०७) पास जाता हुआ—उवसप्पंत (१०७) पिंजडा-पंजरं, पिंजरं (५४) पीछे से--पच्छओ (१०६) पुकार-धाहा (दे०) (१०५) पुण्य-(पुण्णं) (६) पुराना-पुराअणं (४८) पुराना मंदिर--अहिहरं (दे०) (६८) पुष्टि वाला–पुट्ठिय (वि) (४८) पूंछ-पुच्छं (५८) पूर्ण-पुण्णं (६) पेट्रोल-भूतेलसारो (६६) पैर-चलणो (१०४) पोला—पोलं (दे०) (४६) . पोल्लं (वि) (१०४) प्यास-पिवासा (१०८) तिसा (१०६) प्रकृति-पगई (स्त्री) (२४) प्रतिज्ञा-अभिग्गहो (१०४) प्रतिदिन-पइदिणं (९) प्रतिमा-पडिमा (७४) प्रद्वेष-पओसो (दे०) (१०७) प्रशंसनीय-सग्घ (वि) (५१) प्रसंग-वइअरो (१०४) प्रस्थान-पत्थाणं (८४) प्रायश्चित्त के लिए अपने दोष का गुरु को न बताना-अणालोइय (वि) (१०७) प्रीति--पीई (४०) फटा हुआ—फट्टि (१०६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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