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प्राकृत वाक्यरचना बोध
उतरकर--ओयरिऊण (१०४) क्रम-कमो (१०४) उत्पथ--उप्पह (१०७)
क्षेत्र-खेत्तं, छेत्तं (३६) उत्सव-महो, महं (३२)
क्षेत्र---पल्लवायं (६३) उदधि-उअहि (पुं) (१००) खंडन-विसारणं (६६) उदर--(उअरं) (४४)
खट्टा-खट्ट (२४) उदित-उइय (वि) (१००) खाई-फलिहा (३५) उदित--इयं (१०४)
खिचडी-किसरा (८२) उद्यम--उज्जमो (३६)
खेत में सोने वाला पुरुष-परिवासो उपद्रव-उवद्दवं (१०८) उपहार--उवहारो (१०३) गड्डा-खड्ड (७२) उपार्जित--उवज्जिय (वि) (१०४) गलना-गलणं (४६) उपासना-उवासणं (७२) ........: गले का गलिच्च (६६) ऋद्धि संपन्न-खद्धादाणिअ (वि) गवाले की लड़की-गोवदारया
(१०७) कचरा--कयवरो (६८)
गहरा-गहिरो (१००)
गाडी---सगडं (१०२) कटाक्ष---काणच्छि (स्त्री) (५१)
गीला (आर्द्र)---अद्द (६४) कपास--- कपासो, ववणं (न, स्त्री)
गुफा---गुहा (१००) (७७)
गंद--णिज्जासो (८३) कबूतर---पारेवयो (१०६)
गोष्ठी-~~-गोट्ठी (४०) कब्ज-मलावरोहो (४८) ग्रास---गासो (४६) कर्तव्य-कायव्वं (७३)
घटना-घडणा (७८) कलेवा-- कल्लवत्तो, पायरासो (१६) घडी--- (घडी) (५२) कल्पना---कप्पणा (५३)
घर---घरो (११) काच-कायो (७८)
घर्षण-घसणं, घसणं (३७) कांति-कति (स्त्री) (४०) घाव-वणो (४३) कार्यसमूह-कज्जालावो (१००) घास- तणं (१०१) कीमती-महग्धं (५१)
चूंघट--अंगुट्ठी (दे०) विरंगी (दे०) . कुशल-कुसलो (६६)
___अवउठणं, अवगुंठणं (१०) कृपापात्र---किवापत्तं (८०) घोडे के मुख को बांधने कृमि -किमी (४४)
का वस्त्र--कडाली (५८) केन्द्र–किंदियं (६९)
घोंसला—णोडं, गेड्ड (५६) कोप–कोवो (७८)
चक्र-चक्को (१०४)
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