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________________ ५६२ प्राकृत वाक्यरचना बोध उतरकर--ओयरिऊण (१०४) क्रम-कमो (१०४) उत्पथ--उप्पह (१०७) क्षेत्र-खेत्तं, छेत्तं (३६) उत्सव-महो, महं (३२) क्षेत्र---पल्लवायं (६३) उदधि-उअहि (पुं) (१००) खंडन-विसारणं (६६) उदर--(उअरं) (४४) खट्टा-खट्ट (२४) उदित-उइय (वि) (१००) खाई-फलिहा (३५) उदित--इयं (१०४) खिचडी-किसरा (८२) उद्यम--उज्जमो (३६) खेत में सोने वाला पुरुष-परिवासो उपद्रव-उवद्दवं (१०८) उपहार--उवहारो (१०३) गड्डा-खड्ड (७२) उपार्जित--उवज्जिय (वि) (१०४) गलना-गलणं (४६) उपासना-उवासणं (७२) ........: गले का गलिच्च (६६) ऋद्धि संपन्न-खद्धादाणिअ (वि) गवाले की लड़की-गोवदारया (१०७) कचरा--कयवरो (६८) गहरा-गहिरो (१००) गाडी---सगडं (१०२) कटाक्ष---काणच्छि (स्त्री) (५१) गीला (आर्द्र)---अद्द (६४) कपास--- कपासो, ववणं (न, स्त्री) गुफा---गुहा (१००) (७७) गंद--णिज्जासो (८३) कबूतर---पारेवयो (१०६) गोष्ठी-~~-गोट्ठी (४०) कब्ज-मलावरोहो (४८) ग्रास---गासो (४६) कर्तव्य-कायव्वं (७३) घटना-घडणा (७८) कलेवा-- कल्लवत्तो, पायरासो (१६) घडी--- (घडी) (५२) कल्पना---कप्पणा (५३) घर---घरो (११) काच-कायो (७८) घर्षण-घसणं, घसणं (३७) कांति-कति (स्त्री) (४०) घाव-वणो (४३) कार्यसमूह-कज्जालावो (१००) घास- तणं (१०१) कीमती-महग्धं (५१) चूंघट--अंगुट्ठी (दे०) विरंगी (दे०) . कुशल-कुसलो (६६) ___अवउठणं, अवगुंठणं (१०) कृपापात्र---किवापत्तं (८०) घोडे के मुख को बांधने कृमि -किमी (४४) का वस्त्र--कडाली (५८) केन्द्र–किंदियं (६९) घोंसला—णोडं, गेड्ड (५६) कोप–कोवो (७८) चक्र-चक्को (१०४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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