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________________ कृत्यप्रत्यय शब्द संग्रह (यंत्र वर्ग) घडी यंत्र (घडीजंतं) रेडिया-झुणिखेवअजंतं टाइपराइटर-लेहणजंतं लाउडस्पीकर-सुइजंतं टेलीफोन-वत्ताजंतं दूरवीक्षण-दूरविक्खणजंतं थर्मामीटर-तावभाव बिजली का पंखा-संपावीजणं प्रेस-मुद्दणालयो साउण्ड वॉक्स-झुणिमंजूसा धातु संग्रह आलूप-हरण करना आवआस-आलिंगन करना आलोअ-देखना आवज्ज-प्राप्त करना आलोअ-आलोचना करना, आवट्ट-चक्र की तरह घूमना, गुरु को अपना अपराध कहना आवड-आना, आगमन करना आलोड-हिलोरना, मंथन करना आवत्त-आना आव (आ+या)-आना | आवर-ढांकना कृत्यप्रत्यय जहां अंत में चाहिए का प्रयोग आए अथवा यह करने योग्य है, खाने योग्य है या करना है, खाना है, जाना है—इत्यादि स्थानों पर कृत्य प्रत्ययों का प्रयोग होता है। इन्हें विध्यर्थ कृदन्त कहते हैं। संस्कृत में कृत्य प्रत्यय पांच हैं ---तव्य, अनीय, य, क्यप, घ्यण् । प्राकृत में धातु से तव्व, अणीअ और अणिज्ज प्रत्यय लगाने से विध्यर्थ कृदन्त के रूप बनते हैं। य, क्यप् और ध्यण् प्रत्ययों में य शेष रहता है । संस्कृत के य प्रत्यय को प्राकृत में 'ज्ज' हो जाता है। पूर्व नियम (६५) के अनुसार तव्व प्रत्यय के पूर्ववर्ती अ को इ और ए आदेश होता है । तव्व प्रत्ययहस-हसितव्यम् (हसितव्वं, हसेतन्वं, हसिअव्वं, हसेअव्वं) हंसना चाहिए हो-भवितव्यम् (होइतव्वं, होएतव्वं, होइअव्वं, होएअव्वं) होना चाहिए अणीअ प्रत्ययहस-हसनीयम् (हसणीअं) हंसना चाहिए कर-करणीअं (करणीयम्) करना चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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