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कारक
शब्द संग्रह (वृत्ति जोवी वर्ग ३) किसान—किसीवलो
सपेरा-आहितुंडिओ अहीर---अहिरो, गोवालो
भंगी-संमज्जओ गडरिया-अयाजीवो, अयापालो नौकर-सेवओ, भिच्चो घसियारा--तणहारो
बढई-रहयारो, तक्खो, वड्ढई मजदूर-भारहरो
मूल्य लेकर धान काटने वालापसारी--गंधिओ
अत्थारिओ चौकीदार-पहरी, दारवालो चपरासी-पेसो चुराई वस्तु को खोजकर लाने वाला--कूवियो
जूठा-णवोद्धरणं (दे०)
दुर्लभ-दुलहो ब्राह्मण-बंभणं
धूम्रपान-धूमपाणं
धातु संग्रह पडिचर-परिभ्रमण करना। पडिणिग्गच्छ-बाहर निकलना पडिणिज्जाय-अर्पण करना पडिन्नव-प्रतिज्ञा कराना, नियम पडिदा-दान का बदला देना
दिलाना पडितप्प-भोजनादि से तृप्त करना पडिपाअ-प्रतिपादन करना पडिदंस-दिखलाना
पडिपुच्छ---पूछना, पृच्छा करना पडिपेहा-ढकना, आच्छादन करना
कारक-प्राकृत में कारक संबंधी विधान संस्कृत के समान है । कुछ विशेष नियम ये हैं
नियम ६२५ (चतुर्थ्याः पष्ठी ३३१३१) चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। मुनये मुनिभ्यो वा ददाति (मुणिस्स मुणीणं वा देहि) नमो देवाय देवेभ्यो वा (नमो देवस्स देवाणं वा)।
नियम ६२६ (तादर्घ्य ; ३३१३२) तादर्थ्य में होने वाली चतुर्थी विभक्ति के एकवचन को षष्ठी विभक्ति विकल्प से होती है । देवार्थम् (देवाय, देवस्स वा)।
नियम ६२७ (वधाडाइश्च ३३१३३) वध शब्द से चतुर्थी विभक्ति को डाइ (आइ) और षष्ठी विभक्ति विकल्प से होती है । वधार्थम् (वहाई,
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