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वर्णबोध
वर्ण-प्रत्येक पूर्ण ध्वनि को वर्ण कहते हैं। प्राकृत में वर्ण के दो भेद हैं--(१) स्वर (२) व्यञ्जन ।
__ स्वर के दो भेद हैं--हस्वस्वर और दीर्षस्वर । ह्रस्वस्वर की एक मात्रा होती है । दीर्घ स्वर की दो मात्राएं होती हैं । संस्कृत में प्लुतस्बर होता है, जिसकी तीन मात्राएं होती हैं।
० प्राकृत में प्लुत स्वर नहीं होता। ० प्राकृत में ऋ, ऋ, लु, ल स्वरों का प्रयोग नहीं होता। हस्वस्वर-अ, इ, उ, ए, ओ। दीर्घस्वर--आ, ई, ऊ, ए, ओ।
ए और ओ दीर्घस्वर हैं, परन्तु प्राकृत में ए और ओ से परे संयुक्त व्यञ्जन होने पर ए और ओ को ह्रस्वस्वर माना गया है। जैसे---एक्केक्कं (एकैकम् ), जोव्वणं (यौवनम् ), आरोग्गं (आरोग्यम्) । प्राकृत में ऐ और औ का प्रयोग नहीं होता। केवल (सू. १३१६६) से अयि को ऐ आदेश होता है ।
नियम १ (अथ प्राकृतम् ॥१) प्राकृत में ऋ, ऋ, लु, ल, ऐ, ओ, ङ, ब, श, ष, विसर्ग, प्लुत---ये नहीं होते। ङ और अपने वर्ग के व्यंजनों के साथ होते हैं।
प्राकृत में व्यंजन २६ हैं -- क, ख, ग, घ
त, थ, द, ध, न च, छ, ज, झ
प, फ, ब, भ, म ट, ठ, ड, ढ, ण .
यर, ल, व, स, ह ० प्राकृत में श, ष और विसर्ग नहीं होते। • स्वर रहित इ तथा द्वित्व ङ्ङ प्रयुक्त नहीं होता। . .
० प्राकृत में हु और ज का प्रयोग अपने वर्ग के व्यंजनों के साथ मिलता है, स्वतंत्र नहीं..
पङ को, पङ खो, खङ्गो, जङधा वञ्च, वाञ्छा, पजो, विझो ० स्वर रहित व्यंजन अंत में नहीं होते हैं। ० कोई भी व्यंजन स्वर के बिना क्, च्, ट्, त्, प् रूप में अकेला ... प्रयुक्त नहीं होता। . . . . . . .
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