SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० प्राकृत वाक्यरचना बोध मउडो पारकेरं अस्थि । एगावलि बंधिउ कास मणो उक्कंठेइ (उत्सुक है ? अज्जत्ता रयणावलिं पासिउ को वि न गच्छइ । रामस्स भुआए केउरं आसि । चंदणबाला अवि पायाभरणं इच्छइ । घंटियाए सद्दो कण्णपिओ भवइ । पत्ती पइणामांकियं अंगुलीयं अंगुलीए धारइ । रायिंदस्स पत्तीइ पासे चत्तारि कंकणाई संति। अरुणा सुवण्णचूडा कहं न धारइ ? कुसुमस्स माआ णियं कडिसुत्तं दंसइ (दिखलाती है)। धातु प्रयोग विरत्तो संसाराओ पलायइ । पुप्फाई राओ कहं पमिलायंति । अहं तुज्झ अभिहाणं पम्हअहीअ । सीसो आयरियस्स संथारं पत्थरइ। सव्वे साहुणो जिणं थन्ति । न जाणामि रामो अज्ज कहं ओणियं थिमइ ? रिसभो पोत्थयस्स उरि पत्तं परिआलइ । रमेसो धणं पडिहणइ । प्राकृत में अनुवाद करो मेरी दादी के घर में मोतियों की कई मालाएं हैं। पुरुष भी कान की बाली पहनते हैं । प्रभा ने विवाह में टिकुली पहनी थी। संपतराज ने अपने चारों पुत्रों को चार कंठे दिए। विमला नथ पहनना क्यों नहीं चाहती है ? माता ने अपनी पुत्री को मंगलसूत्र दिया। हाथ का कडा किसके पास है ? गले में हंसुली शोभा देती है। मुकुट पहनने के बाद वह राजा जैसा लगता है। मणियों का हार जयपुर में मिलता है । रत्नों का हार कौन पहनेगा? हडमान का भुजाबंध किसके पास है ? लच्छा को देखने उसके घर कौन-कौन गए? तुम्हारे घुघुरू का शब्द आकाश में फैल गया। अंगुठी पर तुम्हारा नाम है या पति का? बंगडी पहनने वाली आजकल कौन है ? चूडी सुहाग का चिह्न है। मेरी भाभी कंदोरे को बहुत चाहती है। धातु का प्रयोग करो जो संयम में कमजोर होते हैं, वे ही साधुत्व से पलायन करते हैं। उपालंभ सुनकर उसका मुखकमल मुरझा गया। मैं आपकी सारी गलतियों को भूलता हूं। मेरे लिए बिछौना कौन बिछाएगा? वह भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति करता है । तुम बार-बार आंखों को क्यों गीला करते हो ? वह कंबल पर सूती वस्त्र लपेटता है। गांव के लोगों ने उग्रवादियों पर प्रतिघात किया। प्रश्न १. त व्यंजन का परिवर्तन किन-किन व्यजनों में होता है ? एक-एक __ उदाहरण सहित नियम का उल्लेख करो। २. द को र, ल, ध, व, ह करने वाले कौन-से नियम हैं ? ३. प और ब का किन-किन व्यंजनों में परिवर्तन होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy