SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 34 STUDIES IN JAINISM रामचंद्रशास्त्री जोशी : जैनोंने जो परमाणु माने हैं वे अनुमानके आधारपर या अन्य किसी प्रमाणके आधारपर ? दूसरा यह कि आधुनिक विज्ञान अनुगत और जैन तत्त्वज्ञान निर्गत शास्त्र होने सेदोनों की तुलना करना गलत है । सीतारामशास्त्री कुरुंदकर : जिस प्रकार नैयायिक अनुमानके आधारपर परमाणुओंकी सिद्धी करते हैं वैसे ही जैन भी । अतः जैनोंने किस प्रमाणपर परमाणु माने हैं यह सवाल गलत है । ईश्वरचंद्र : ___डॉ. सिकदारजीने Matter के बारेमें जो बातें कहीं के किसी भी जैन ग्रंथमें नहीं मिलती हैं। दूसरा यह कि जैन परमाणुवाद और न्याय-वैशेषिक परमाणुवाद एक दूसरेसे मिलते हैं यह बात ठीक नहीं । कारण न्याय-वैशेषिक परंपरामें परमाणु अलग अलग प्रकारके माने गये हैं । लेकिन तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाती कहते हैं- " स्पर्शवर्णरसवन्तः परमाणवः (पुद्गलाः)" । पृथिवी, जल, वायु आदिका पुद्गलत्व एकही है । अतः जैन परमाणुओंकी न्याय-वैशेषिक परमाणुओंसे समानता नहीं मानी जाती । वैसे ही न्यायकुमुदचंद्र और न्यायविनिश्चय आदि ग्रंथोंमें शब्दको पुद्गलका धर्म माना गया है, किंतु न्याय-वैशेषिक शब्दको आकाशका गुण मानते हैं । इस दृष्टिसे भी न्याय और जैन परमाणुविचार एक प्रकारका नहीं ठहरता । उसी तरह न्याय-वैशेषिक परंपरामें वायु रूपरहित है और जैन मतानुसार वायु पुद्गलात्मक है । अतः वायुका रूपभी है । तो पुद्गलसे शब्द कैसे प्रकट होता है और वायुमें और पर्यायत: परमाणुओंमें रूप कैसे होता है इसका जैनोंने जो स्पष्टीकरण किया है वह कितना ठीक है ? दूसरा यह कि पाश्चात्त्य विद्वानोंमें Matter के स्वरूपके बारेमें एकवाक्यता नहीं है । कई लोग Matter में space और time का अंतर्भाव करते हैं तो जन कभीभी नहीं। वैसे ही श्वेतांबर और दिगंबर जैन अदृष्टका अंतर्भाव space और time में करते है, जो न्याय-वैशेषिकोंको अमान्य है । अत : जैन परमाणुवाद न्याय-वैशेषिक परमाणुवादसे भी भिन्न है और जैन पुद्गल आधुनिक Matter से । J. C. Sikdar : My view was prompted by the consideration that there are certain similarities between Newtonian, Nyāya and Jaina concepts of matter. Moreover, there are Jaina texts supporting (a) Newtonian view that time is an eternal substance, (b) Einsteinian view that time is a fourth dimension as also the Einsteinian view that matter exists continually is space and time. ..
SR No.002008
Book TitleStudies in Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
PublisherIndian Philosophical Quarterly Publication Puna
Publication Year1984
Total Pages284
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy