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________________ स्याद्वाद-मीमांसा 135 सप्तभंगी-सात भंगों के समुदाय को सप्तभंगी कहते हैं। प्रकृत में 'भहस्ग' शब्दका अर्थ धर्म और वाक्य दोनों अभिप्रेत हैं । सात धर्मों अथवा सात वाक्यों का समुदाय सप्तभंगी है। इसकी परिभाषा अकलंकदेव१५ने इस प्रकार दी है -प्रश्नकर्ता के प्रश्नों के अनुसार एक वस्तु में विधि और प्रतिषेध का कथन करना सप्तभंगी है। मूल में दो ही धर्म हैं - १ तद् (विधि) और २ अतद् (प्रतिषेध) । तत् से सत्त्व, एकत्व, नित्यत्व, अभिन्नत्व आदि विधिस्वभाव धर्मों का और अतद् से असत्त्व, अनेकत्व, अनित्यत्व, भिन्नत्व आदि प्रतिषेधस्वभाव धर्मों का ग्रहण अभिप्रेत है। इस प्रकार विधि और प्रतिषेध के रूप में लहराते हुए सत्व-असत्त्व, एकत्व अनेकत्व, नित्यत्व-अनित्यत्व, अभिन्नत्व-भिन्नत्व आदि अनन्त युगलधर्म वस्तु-समुद्र में समाये हुए हैं। तथा प्रत्येक युगल-धर्म के आधार से उसमें सात-सात अवान्तर धर्मों की स्याद्वाद सप्तभंगी प्रक्रिया से व्यवस्था करता है - उनकी अभिव्यक्ति करता है। जैसे सत्त्व-असत्त्व युगल के आश्रय से सत्त्व, असत्त्व, उभयत्व, अवक्तव्यत्व, सत्त्वावक्तव्यत्व, असत्त्वावक्तव्यत्व, और सत्त्वासत्त्वावक्तव्यत्व ये सात असंयोगी - संयोगी अपुनरुक्त अवान्तर धर्म अभिव्यक्त होते हैं । इसी प्रकार एकत्व-अनेकत्व, नित्यत्व-अनित्यत्व, अभिन्नत्वभिन्नत्व आदि युगलों से भी तदीय सात-सात अवान्तर धर्मों को स्याद्वाद सप्तभंगी द्वारा उद्घाटित करता है। इन्हीं सात-सात धर्मों के सम्बन्ध में जिज्ञासुओं को उतने (सातसात) ही सन्देह, उतनी (सात-सात) ही जिज्ञासाएँ और उतने (सात-सात) ही प्रश्न उठते है। इन्हीं सात-सात प्रश्नों के समाधान के लिए स्याद्वादी वक्ता सात-सात उत्तरवाक्यों का प्रतिपादन करता है । इन सात-सात उत्तरवाक्यों का नाम सप्तभंगी है । इस तरह तद्-तद् युगल के आश्रय से अभिव्यक्त उक्त सात-सात धर्मों का प्रतिपादन करने के लिए अनगिनत (अनन्त) सप्तभंगियां जैन दर्शन में इष्ट है। वस्तुतः सप्तभंगी, प्रश्नों के उत्तर में अभिहित वाक्यावली, जो सात वाक्यों का समुच्चय है, एक प्रक्रिया पद्धति या नयविवक्षा है, जिसकी योजना करके वक्ता अनेकान्तरूप वस्तु का कथन करता है । स्याद्वाद इस सप्तभंगी पर आधारित है, इसीसे स्याद्वाद को 'सप्तभङगनयापेक्ष' कहा गया है । प्रश्नकर्ता जब पूछता है कि वस्तु क्या सत् है ? क्या असत् है ? क्या उभय है ? क्या अवक्तव्य है ? क्या सदवक्तव्य है ? क्या असदवक्तव्य है ? अथवा सदसदवक्तव्य है ? स्याद्वादी इन सातों प्रश्नों का उत्तर सप्तभंगी प्रक्रिया से इस प्रकार देता है : १. किसी अपेक्षा से वस्तु सत् ही है ।१० २. किसी अपेक्षा से वस्तु असत् ही है ।
SR No.002008
Book TitleStudies in Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
PublisherIndian Philosophical Quarterly Publication Puna
Publication Year1984
Total Pages284
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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