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________________ ९०८ भगवती आराधना असुरसुरमणुयकिण्णररविससिकिंपुरिसमहियवरचरणो । दिसउ मम बोहिलाहं जिणवरवीरो तिहुवर्णिदो ।। २१६३ ।। खमदमणियमघराणं धुदरयसुहदुक्खविप्पजुत्ताणं । णाणुज्जोदिय सल्लेहणम्मि सुणमों जिणवराणं ॥ २१६४॥ गा० - जिनके पूजनीय चरणोंको असुर, सुर, मनुष्य, किन्नर, सूर्य, चन्द्र, और किम्पुरुष जाति व्यन्तर पूजते हैं वे तीनों लोकोंके स्वामी वीर जिनेन्द्र मुझे बोधिलाभ प्रदान करें ॥ २१६३॥ गा०-- जिन्होंने स्वयं क्षमा, इन्द्रियदमन और नियमोंको धारण करके कर्ममलको नष्ट किया, तथा सांसारिक सुख दुःखसे रहित हुए और अपने ज्ञानके द्वारा सल्लेखनाको प्रकाशित किया उन जिन देवोंको नमस्कार हो ॥ २१६४॥ भगवती आराधना समाप्त हुई । श्रीमदपराजितसूरेष्टीका कृतः प्रशस्तिः नमः सकलतत्वार्थप्रकाशन महौजसे । भव्यचक्रमहाचूडारत्नाय सुखदायिने || १ || श्रुतायाज्ञानतमसः प्रोद्यद्धर्मांशवे तथा । केवलज्ञानसाम्राज्यभाजे भव्यैकबंधवे ॥२॥ चन्द्रनन्दिमहाकर्मप्रकृत्याचार्यप्रशिष्येण आरातीयसूरिचूलामणिना नागनन्दिगणिपादपमोपसेवाजातमतिलवेन वलदेवसूरिशिष्येण जिनशासनोद्धरणधीरेण लब्धयशःप्रसरेण अपराजितसूरिणा श्रीनन्दिगणिनावचोदिनेन रचिता आराधनाटीका श्रीविजयोदयानाम्ना समाप्ता । टीकाकार अपराजित सूरिकी प्रशस्ति जो समस्त तत्त्वार्थको प्रकाशित करनेके लिये महान् प्रकाशरूप है, भव्य समुदाय के लिये महान् शिरोमणि है, जिसे वे सिरपर धारण करते हैं, सुखको देनेवाला है, अज्ञानरूपी अन्धकारके लिये उगती हुई प्रकाश किरण है, जिसके द्वारा केवल ज्ञानरूपी साम्राज्य प्राप्त होता है तथा जो भव्य जीवोंका एकमात्र बन्धु है उस श्रुतको नमस्कार हो । Jain Education International जो चन्द्रनन्दि नामक महाकर्म प्रकृति आचार्यके प्रशिष्य हैं, आरातीय आचार्यों के चूड़ामणि हैं, नागनन्दि गणिके चरण कमलोंकी सेवा के प्रसादसे जिन्हें ज्ञानका लेश प्राप्त हुआ, जो बलदेव सूरिके शिष्य हैं और जिन शासनका उद्धार करनेमें धीरवीर हैं, जिनका यश सर्वत्र फैला है; उन अपराजित सूरिने श्रीनन्दिगणिको प्रेरणा से श्री विजयोदया नामक आराधना टीका रची । १. श्री नागनन्दि - मु० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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