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________________ विजयोदया टीका ९०७ आराधणं असेसं निरवशेषामाराधनां वर्णयितुं कस्समर्थो भवेत्, श्रुतकेवल्यपि निरवशेष न वर्णयेत् ॥२१५८॥ अज्जजिणणंदिगणि-सव्वगुत्तगणि-अज्जमित्तणंदीणं । . अवगमिय पादमूले सम्म सुत्तं च अत्थं च ॥२१५९॥ 'अजजिणणंदि' आचार्यजिननंदिगणिनः, सर्वगुप्तगणिनः, आचार्यमियनंदिनश्च पादमूले सम्यगर्थ श्रुतं वावगम्य ॥२१५९॥ पुवायरियणिबद्धा उवजीवित्ता इमा ससत्तीए । आराधणा सिवज्जेण पाणिदलभोइणा रइदा ।।२१६०॥ 'पुव्वायरिय' पूर्वाचार्यकृतामिव उपजीव्य इयं आराधना स्वशक्त्या शिवाचार्येण रचिता पाणितलभोजिना ॥२१६०॥ छदुमत्थदाए एत्थ दु जं बद्ध होज्ज पवयण विरुद्ध। सोधेतु सुगीदत्था पवयणवच्छलदाए दु ॥२१६१॥ 'छदुमत्थदाए' छद्यस्थतया यदत्र प्रवचनंनिदर्शनवद्ध (विरुद्धं) भवेत् तत्सुगृहीतार्थाः शोधयंतु प्रवचनवत्सलतया ॥२१६१॥ आराघणा भगवदी एवं भत्तीए वण्णिदा संती। संघस्स शिवजस्स य समाधिवरमुत्तमं देउ ॥२१६२।। 'आराधणा भगवदी' आराधना भगवती एवं भक्त्या कीर्तिता सव्वंगुप्तगणिनः संघस्य शिवाचार्यस्य च विपुला सकलजनप्रार्थनीयां अव्यावाधसुखां सिद्धि प्रयच्छतु ॥२१६२॥ - गा०—मेरे समान कौन अल्पश्रुतज्ञानी सम्पूर्ण आराधनाका वर्णन करनेमें समर्थ हो सकता है। श्रुतकेवली भो सम्पूर्ण आराधनाको नहीं कह सकते। अर्थात् भगवान सर्वज्ञ ही आराधनाका सर्वस्व वर्णन कर सकते हैं ।।२१५८॥ गा०-आर्य जिननन्दिगुणि, सर्वगुप्त गणि, और आर्य मित्रनन्दीके पादमूलमें सम्यकपसे ध्रुत और उसके अर्थको जानकर पूर्वाचार्यके द्वारा रची गई आराधनाको आधार बनाकर हस्तपुटमें आहार करनेवाले मुझ शिवाचार्यने अपनी शक्तिसे इस आराधना ग्रन्थको रचा ॥२१५९-६०।। गा०-छद्मस्थ अर्थात् अल्पज्ञानी होनेसे इसमें जो कुछ आगमके विरुद्ध लिखा गया हो; उसे आगमके अर्थको सम्यक्प से ग्रहण किये हुए ज्ञानोजन सुधारनेकी कृपा करें ॥२१६१।। गा०-इस प्रकार भक्तिपूर्वक वर्णनको हुई भगवती आराधना सर्वगुप्त गणीके संघको तथा रचयिता शिवार्यको समस्त जनोंसे प्रार्थनीय अव्याबाध सुखरूप सिद्धिको प्रदान करें अर्थात् उसके प्रसादसे हम सबको शुक्लध्यानकी प्राप्ति हो ॥२१६२।। ११४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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