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________________ विजयोदया टीका ८५५ कश्चित् भूतिकर्मकुशीलः भूतिग्रहणमुपलक्षणं भूत्या, धूल्या, सिद्धार्थकैः, पुष्पैः, फलैरुदकादिभिर्वा मन्त्रित रक्षा वशीकरणं वा यः करोति स भूतिकुशीलः । उक्तं च भूदीयव धूलीयं वा सिद्धत्थग पुप्फफलुदकादीहिं। . रक्खं वसिगरणं वा करेदि जो भूदिगफुसीलो ॥ कश्चित्प्रसेनिकाकूशीलः, अंगुष्ठप्रसेनिका, अक्षरप्रसेनी, प्रदीपप्रसेनी, शशिप्रसेनी, सूर्यप्रसेनी स्वप्नप्रसेनीत्येवमादिभिर्जनं रञ्जयति यः सोऽभिधीयते प्रसेनिकाकुशील इति । कश्चिन्निमित्तकुशीलः विद्याभिर्मन्त्ररौषधप्रयोगैर्वा असयंत चिकित्सां करोति सोऽप्रसेनिकाकुशीलः । कश्चिन्निमित्तकुशीलः अष्टाङ्गनिमित्तं ज्ञात्वा यो लोकस्यादेशं करोति स निमित्तकूशीलः । आत्मनो जाति कुलं वा प्रकाश्य यो भिक्षादिकमुत्पादयति स आजीवकुशीलः । केनचिदुपद्रुतः परं शरणं प्रविशति, अनाथशालां वा प्रविश्य आत्मनश्चिकित्सां करोति स वा आजीवकुशील: । विद्यायोगादिभिः परद्रव्यापहरणदम्भप्रदर्शनपरः कक्वकुशीलः । इन्द्रजालादिभिर्यो जनं विस्मापयति सोऽभिधीयते कुहनकुशील इति । वृक्षगुल्मादीनां पुष्पाणां, फलानां च संभवमुपदर्शयति, गर्भस्थापनादिकं च करोति यः स संमूर्छनाकुशीलः । 'त्रसजानां, कीटादीनां, वृक्षादीनां, पुष्पफलादीनां, गर्भस्य परिशातनं आभिचारिकं च यः करोति शापं च प्रयच्छति स प्रपातनकुशीलः । उक्तं च काओतिकभूदिकम्मे पसिणा पसिणे णिमित्तमाजीवे । कक्वकुहन समुच्छण पपादणादीकुसोलो दु॥ इति ।। कोई भूतिकर्मकुशोल होता है। यहाँ भूति शब्दसे भस्म, धूल, सरसों, पुष्प, फल, अथवा जल आदिसे मंत्र पढ़कर रक्षा या वशीकरण जो करता है वह भूतिकर्म कुशील है । कहा है जो भस्म, धूल, सरसों, पुष्प, फल, जल आदिके द्वारा रक्षा या वशीकरण करता है वह भूतिकर्म कुशील है। कोई प्रसेनिकाकुशील होता है। जो अंगुष्ठप्रसेनिका, अक्षरप्रसेनिका, शशिप्रसेनिका, सूर्यप्रसेनिका, स्वप्नप्रसेनिका आदि विद्याओंके द्वारा लोगोंका मनोरंजन करता है । कोई अप्रसेनिका कुशील होता है जो विद्या, मंत्र और औषध प्रयोगके द्वारा असंयमी जनोंका इलाज करता है। कोई निमित्तकुशील होता है जो अष्टांग निमित्तोंको जानकर लोगोंको इष्ट अनिष्ट बतलाता है। जो अपनी जाति, अथवा कुल बतलाकर भिक्षा आदि प्राप्त करता है वह आजीवकुशील है । जो किसीके द्वारा सताये जानेपर दूसरेकी शरणमें जाता है अथवा अनाथशालामें जाकर अपना इलाज कराता है वह भी आजीव कुशील होता है। जो विद्या प्रयोग आदिके द्वारा दूसरोंका द्रव्य हरने और दम्भप्रदर्शनमें तत्पर रहता है वह कक्वकुशील होता है। जो इन्द्रजाल आदिके द्वारा लोगोंको आश्चर्य उत्पन्न करता है वह कुहनकुशील है। जो वृक्ष, झाड़ी, पुष्प और फलोंको उत्पन्न करके बताता है तथा गर्भस्थापना आदि करता है वह सम्मूच्छनाकुशील है। जो त्रसजातिके कीट आदिका, वृक्ष आदिका, पुष्प फल आदिका तथा गर्भका विनाश करता है, उनकी हिंसा करता है, शाप देता है वह प्रपातन कुशील है । कहा है कौतुक कुशील, भृतिकर्म कुशील, प्रसेनिका कुशील, अप्रसेनिका कुशील, निमित्तकुशील, आजीव कुशील, कक्वकुशील, कुहनकुशील, सम्मूर्च्छनकुशील, प्रपातन कुशील आदि कुशील होते १. त्रसजातीनां -आ० । २. अभिसारिकं -मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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