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________________ १८ भगवती आराधना वथा वस्त्वनित्यं, नित्यानित्यात्मकत्वात्सकलस्य । यदि हि नित्यमेव स्यात् क्रियमाणतानुरूपहेतुकदंबकेना'यक्ता तस्यावदतो नित्यं भवत्येव च न भवतीति दृश्यप्रतिपत्तयः ॥ शुद्धा नया येषां प्रतिपत्तणां ते शुद्धनयाः । 'पुण' पुनः । णाणं ज्ञानमित्यभिमतं परस्य । 'मिच्छादिहिस्स' मिथ्यादृष्टेः । 'वैति' ब्रुवते । 'अण्णाणं' अज्ञानं इति । न ज्ञानशब्दः सामान्यवाची । किन्तु यथार्थप्रतिपत्तिरेव ज्ञानशब्दाभिधेयेति । ज्ञायते मन्यते अर्थः परिच्छिद्यते येन तज्ज्ञानम् । वस्त्वन्यभूतं च रूपमादर्शयता नार्थः परिच्छिद्यते तस्मान्न मिथ्याज्ञानं ज्ञानशब्दस्यार्थः, तदज्ञानमित्येव ग्राह्यम् ॥ ननु च "गदि ईदिये च काये जोगे वेदे कसाय णाणे य । संजमदंसणलेस्सा भविया सम्मत्तसण्णि आहारे ॥" -[प्रा० ५० सं० ११५७।] इत्यत्र ज्ञानशब्दः सामान्यवाची सत्यं, ज्ञातिआनमिति व्युत्पत्तौ सा निरूपणा सामान्यशब्द इति ।। 'तम्हा' तस्मात् । 'मिच्छादिट्ठों' तत्त्वश्रद्धानरहितः 'णाणस्साराधको ण होदित्ति' पदघटना । ज्ञानं नाराधयतीत्यर्थः॥ . यदुक्तं अज्ञाने दर्शनाभाव इति किं तदज्ञानं कस्य भवतीति ? तत इदं सुत्र इति। तदतिपेलवं । कि तदज्ञानमित्यस्य प्रश्नस्य प्रतिवचनं न सूत्रेऽस्ति । मिथ्याज्ञानलक्षणप्रतिपादनपरमिथ्यादृष्टिसम्बन्धिज्ञानत्वमेव वस्तु समूह नित्यानित्यात्मक है-कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य है । यदि वस्तु सर्वथा नित्य होती तो उसको करनेके अनुरूप कारणोंका अभाव होता। अतः वस्तु नित्य भी है और अनित्य भी है। जिन ज्ञाताओंके नय शुद्ध होते हैं वे शुद्धनय वाले होते हैं। ऐसे शुद्धनय वाले मिथ्यादृष्टिके ज्ञानको अज्ञान कहते हैं। यहाँ ज्ञान शब्द सामान्य ज्ञानका वाचक नहीं है किन्तु ज्ञान शब्दका अर्थ यथार्थ ज्ञान ही है। जिसके द्वारा वस्तु जानी जाती है वह ज्ञान है। जो वस्तुमें नहीं पाये जानेवाले रूपको दर्शाता है वह वस्तुको नहीं जानता। अतः ज्ञान शब्दका अर्थ मिथ्याज्ञान नहीं है । मिथ्याज्ञान अज्ञान ही है ऐसा स्वीकार करना चाहिए। शंका-'गइ इंदिये च काये' इत्यादि गाथाके द्वारा चौदह मार्गणा बतलाई है। उनमें भी ज्ञान शब्द आता है जो ज्ञान सामान्यका वाचक है ? । समाधान-आपका कहना सत्य है। 'ज्ञातिनि' जानना ज्ञान है, इस व्युत्पत्तिके अनुसार वहाँ ज्ञान शब्दसे ज्ञान सामान्यका ग्रहण किया है। 'तम्हा' इस कारणसे 'मिच्छादिट्टी' जो तत्त्व श्रद्धानसे रहित है वह, णाणस्साराधको न होदि' ज्ञानका आराधक नहीं होता । इस प्रकार पदोंका सम्बन्ध होता है। इस गाथाकी अन्य टीकाकार इस प्रकार व्याख्या करते हैं.--पूर्वमें जो अज्ञान अवस्था में सम्यग्दर्शनकी आराधनाका अभाव कहा है वह अज्ञान क्या है और किसको होता है, इसको बतलानेके लिए यह गाथा सूत्र है। किन्तु उनका यह कथन अयुक्त है। 'वह अज्ञान क्या है' इस प्रश्नका कोई उत्तर इस गाथामें नहीं है। उनका यह भी कथन है कि मिथ्याज्ञानका लक्षण कहते हुए जो मिथ्यादृष्टिसे सम्बद्ध ज्ञानको अज्ञान कहा है उसमें उक्त दोनों प्रश्नोंका उत्तर आता है। १. युक्तता स्यास्यादतो-मु० । यक्तता तस्याव-ज० । २. रूपयता दर्शयता-आ० । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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