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भगवती आराधना तह चेव य तदेहो पज्जलिदो सीयणिरयपक्खित्तो ।
सीदे भूमिमपत्तो णिमिसेण सढिज्ज लोहुण्डं ॥१५५९।। 'तह चेव' तथैव । 'तबेहो' मेरुमात्रदेहः । 'लोहुंडो' लोहपिण्डः । 'पज्जलिदो' प्रज्वलितः । 'सीदणिरयम्मि' शीतनरके । 'पक्खित्तो' प्रक्षिप्तो भूमिमप्राप्त एव । 'सोदेण सडिज्ज शीतेन विशीर्यते ॥१५५९।। शीतोष्णजनितवेदनातिशयमुद्दिश्य शारीरवेदनामाचष्टे
होदि य णरये तिव्वा सभावदो चेव वेदणा देहे ।
चुण्णीकदस्स वा मुच्छिदस्स खारेण सित्तस्स ॥१५६०॥ 'होदि य गरये तिव्वा' भवति च नरके तीव्र वेदनाः । 'देहे' शरीरे । 'सभावदो चेव' स्वभावत एव । 'चुण्णीकदस्सेव' चूर्णीकृतस्येव । 'खारेण सित्तस्स' क्षारेण सिक्तस्य । 'अमुच्छिदस्स' अमूर्छितस्य । यादृशी वेदना तादृश्येव शरीरे वेदनेति यावत् ॥१५६०॥
णिरयकडयम्मि पत्तो जं दुक्खं लोहकंटएहिं तुमं ।
णेरइहिं य' तत्तो पडिओ जं पाविओ दुक्खं ॥१५६१।। 'णिरयकडयम्मि' नरकविलसमूहे-नरकस्कन्धावारे इति केचिद्वदन्ति । अन्ये तु निरयगत इति । 'पत्तो जं दुक्खां' यदुःखं प्राप्तः । 'लोहकंटहि' निशिततरलोहकण्टकैः तुद्यमानस्त्वं ॥१५६१॥
जं कूडसामलीए दुक्खं पत्तोसि जं च मूलम्मि ।
असिपत्तवणम्मि य जं जं च कयं गिद्धकंकेहि ॥१५६२॥ 'जं कूटसामलोहिं य' यदुःखं प्राप्तोऽसि विक्रियाजनितनिशातशाल्मलीभिः । ऊर्ध्वमुखैरधोमुखैश्चतीक्ष्णकण्टकैराकीर्णाःकूटशाल्मलीरारोहन नारकभयात् । 'जं च सूलम्मि' यच्च दुःखमवाप्नोसि शूलाग्रप्रोतः ।
गा०-उसी प्रकार उस पिघले हुए मेरु प्रमाण लोहपिण्डको यदि शीत नरकमें फेंका जाये तो भूमिको प्राप्त होनेसे पहले ही वह वहाँके शीतसे जमकर खण्ड-खण्ड हो जाय ॥१५५९॥
शीत और उष्णसे होनेवाली वेदनाकी महत्ता बतलाकर शारीरिक वेदना कहते हैं
गा०-जैसे किसी मूर्छारहित मनुष्यके शरीरको कुचलकर उसे खारे तप्त तेलसे सींचनेपर जैसी वेदना होती है वैसी ही तीव्र वेदना नरकमें नारकीके शरीर में स्वभावसे ही होती है।।१५६०।।
गा०-नरकरूपी स्कन्धावारमें अथवा गढ़ेमें नारकियोंके द्वारा लोहेके अत्यन्त नुकीले कांटोंपर घसीटे जानेसे तुमने जो दुःख भोगा उसका विचार करो ॥१५६१॥
गा०-टी०-विक्रियासे रचे गये तीक्ष्ण शाल्मली वृक्षोंपर, जो ऐसे कांटोंसे घिरे होते हैं जिनमेंसे कुछ कांटोंका मुख ऊपरकी ओर और कुछका नीचेकी ओर होता है, नारकियोंके भयसे डरकर चढ़ते हुए तुमने जो दुःख भोगा। सूलीके अग्र भागपर चढ़ाये जानेपर तुमने जो दुःख
१. यदा तदेहो च्चिय प-ज०। २. य संतो पडिदो तिक्खेहिं तुइंतो' -इति अन्येषां पाठः ।
-मूलारा० ।
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