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________________ विजयोदया टीका ७०९ हत्थिणपुरगुरुदत्तो संबलिथाली व दोणिमंतम्मि उज्झंतो अधियासिय पडिवण्णो उत्तमं अटुं॥१५४७॥ 'हत्यिणपुरगुरुदत्तो' हास्तिनापुरवास्तव्यो गुरुदत्तः । 'संबलियालीव' हरितसंकोश निरामाख [?]. पूर्णभाजनं अर्कपत्रपिहितमिदं मुखं अधोमुखं संस्थाप्य उपरिभाजनस्य अग्निप्रक्षेपः संबलीत्युच्यते । तद्वच्छिरसि निक्षिप्ताग्निः । 'दोणिमंतम्मि' द्रोणीमत्पर्वते दह्यमानः प्रपन्नः उत्तमायं ॥१५४७।। गाढप्पहारविद्धो पूइंगलियाहिं चालणीव कदो। तध वि य चिलादपुत्तो पडिवण्णो उत्तमं अटुं ॥१५४८।। 'गाढप्पहारविद्धो' नितरामायुधैर्विद्धः । 'पूइंगलियाहिं' कृष्णः स्थूलोत्तमाङ्गः पिपीलिकाभिः । 'चालणीव कदो' चालनीव कृतश्चिलातपुत्रस्तथाप्युत्तमार्थमुपगतः ॥१५४८॥ दंडो जउणावंकेण तिक्खकंडेहिं पूरिदंगो वि । तं वेयणमधियासिय पडिवण्णो उत्तमं अटुं ।।१५४९।। 'दंडो' दंडनामको यतिः । 'जमुणावंकेण' यमुनावकसंज्ञितेन । “तिक्खकंडेहि' तीक्ष्णः शरैः 'पूरितांगोऽपि' रत्नत्रयं समाराधयति स्म ।।१५४९॥ अभिणंदणादिया पंचसया गयरम्मि कुंभकारकडे । आराधणं पवण्णा पीलिज्जंता वि यंतेण ॥१५५०॥ 'अभिणंदणादिगा' अभिनन्दनप्रभृतयः पञ्चशतसंख्याः, कुम्भकारकटे नगरे यंत्रेण पीड्यमाना अप्याराधनां प्राप्ताः ॥१५५०॥ गा०–हस्तिनापुर नगरके वासी गुरुदत्त मुनि द्रोणगिरि पर्वतपर संबलिथालीकी तरह जलते हुए उसकी वेदनाको सहकर उत्तमार्थको प्राप्त हुए ॥१५४७।। विशेषार्थ-एक पात्रमें उड़दकी फलिया भरकर उसे आकके पत्रोंसे ढांककर, उस पात्रका मुख नीचेको करके चारों ओर आगसे घेर देनेपर संबलिथाली कहते हैं। द्रोणगिरि पर्वतपर गुरुदत्त मुनिके सिरपर आग जला दी गई थी। बृ० क० कोषमें १३९ नम्बर पर इनकी कथा विस्तारसे दी है। गा०-चिलातपुत्र नामक मुनिका शरीर काली चीटियोंके तीव्र डंक प्रहारसे चलनीकी तरह बींध दिया गया था। फिर भी उन्होंने उत्तमार्थको प्राप्त किया ॥१५४८॥ गा०-दण्ड नामक मुनिके शरीरको यमुनावक्र नामके राजाने तीक्ष्ण बाणोंसे छेदकर भर दिया था। फिर भी वे उसकी वेदनाको सहन करके उत्तमार्थको प्राप्त हुए ॥१५४९।। विशेषार्थ-बृ० क० कोषमें मुनिका नाम धान्यकुमार दिया है उनकी कथाका क्रमांक १४१ है। गा०—कुम्भकारकट नामक नगरमें अभिनन्दन आदि पांच सौ मुनि कोल्हूमें पेल दिये जानेपर भी आराधनाको प्राप्त हुए ॥१५५०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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