________________
विजयोदय टीका
७०१
'मज्झम्मि' मध्ये | कस्य ? 'चदुव्विधस्स' चतुर्विधस्य संघस्य । 'वूढा' धृता । 'महापदिण्णा' महती प्रतिज्ञा । 'अह' अहं 'आराघइस्सामि' आराधयिष्यामि इति ॥ १५१२।।
को नाम भडो कुलजो माणो थोलाइदूण जणमज्झे । जुझे पलाइ आवडदमेत्ताओ चैव अरिभीदो || १५१३॥
'को नाम भडो' कः पलायते युद्धे भटः शूरः । 'कुलजो ' मानी । 'थोलाइदूण' भुजास्फालनं कृत्वा । जनमध्ये | एवं युद्धे शत्रुपराजयं करिष्यामीति उद्घष्य 'आवडिमेत्तओ' अभिमुखायातशत्रुरेव अरिभीतः । कः पलायनं करोति ॥ १५१३ ॥
दान्ति के योजयति---
थोलादूण पुव्वं माणी संतो परीसहादीहिं ।
आवडिदमित्तओं चेव को विसण्णो हवे साहू || १५१४ ||
'थोलाइदूण पुवं' भुजास्फालनं कृत्वा पूर्व । 'परोसहादीहिं आवडिदमेत्तगो चेव' परीषहा रातिभिरभिमुखायात एव । ' को विसण्णो हवे साहू माणी संतों' को विषण्णो भवेत्साधुवर्गो मानी सन् ॥ १५१४॥
आवडिया पडिला पुरओ चेव कर्मति रणभूमिं ।
अविय मरिज्ज रणे ते ण य पसरमरीण वर्द्धति ।। १५१५ ।।
'आवडिदा पडिकूला' अभिमुखायाताः शत्रवः । पुरदो चैव क्कमंति रणभूमि' पुरस्तादेवोपसर्पन्ति रणभूमि । 'अवि य मरिज्ज रणे' यद्यपि रणे म्रियन्ते । 'ण य पसरमरीण वड्ढन्ति नैव प्रसरमरीणां वर्धयन्ति ।। १५१५ ॥
तह आवइपडि कूलदाए साहवो माणिणो सूरा ।
अइतिव्ववेयणाओं सहंति ण य विगडिमुवयंति ।। १५१६ ।।
'तह आवइपडिकूलदाए' तथा आपत्प्रतिकूलतया । 'साधवो' मानिनः शूराः । 'अदितिब्ववे दणाओ' अतीव तीव्र वेदनाः 'सहंति' सहन्ते । 'ण य विगडिमुवयंति' नैव विकृतिमुपयति ॥१५१६॥
गा०—कौन कुलीन स्वाभिमानी शूरवीर मनुष्योंके वीचमें अपनी भुजाओं को ठोककर 'मैं युद्ध में इस प्रकार शत्रुओंको हराऊंगा' ऐसी घोषणा करके सामने आये शत्रुसे ही डरकर भागना पसन्द करेगा ।। १५१३ ॥
गा० - उसी प्रकार पूर्व में भुजाओंको ठोककर कौन स्वाभिमानी साधु परीषह आदिके सन्मुख आते ही खेदखिन्न होगा || १५१४ ||
गा०-जिन सुभटोंके शत्रु उनके सन्मुख आते हैं वे सुभट शत्रुओंके आनेसे पूर्व ही युद्ध भूमिमें पहुँच जाते हैं। वे युद्ध में मर जायें भले ही किन्तु शत्रुओं का उत्साह नहीं बढ़ने देते ॥१५१५॥
गा० - उसी प्रकार स्वाभिमानी शूरवीर साधु आपत्तियोंकी प्रतिकूलता में अति तीव्र कष्ट भोगते हैं किन्तु विकारको प्राप्त नहीं होते । अर्थात् दुर्भाग्यवश उपसर्ग परीषहोंके उपस्थित होनेपर रत्नत्रयकी विराधना नहीं करते || १५१६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org